टिंडल प्रभाव किसे कहते हैं?
क्या आप टिंडल प्रभाव किसे कहते हैं (Tindal Prabhav Kise Kahate Hain) तथा इसकी परिभाषा जानना चाहते हैं तो यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी. आज इस पोस्ट के माध्यम से आप टिंडल प्रभाव के बारे में जान सकते हैं
टिंडल प्रभाव जो कि हमें सर्वप्रथम कक्षा 10 के मानव नेत्र पाठ में जानने को मिलता है इसके बारे में आज आप पढ़ेंगे. टिंडल प्रभाव क्या है तथा इसकी परिभाषा यह प्रश्न कक्षा 10 और 12वीं की परीक्षाओं के लिए काफी उपयोगी है. दोस्तों नीचे संक्षेप में आपको टिंडल प्रभाव के बारे में बताया गया है तो आइए इसके बारे में जानते हैं
टिंडल प्रभाव किसे कहते हैं {Tindal Prabhav Kise Kahate Hain}
जिस प्रकार अंधेरे कमरे में प्रकाश की किरण में, वायु में धूल के कण चमकते हुए दिखाई पड़ते हैं उसी प्रकार लेंस से केंद्रित प्रकाश को कोलाइडी विलयन में डालकर समकोण दिशा में रखें सूक्ष्मदर्शी से देखने पर कोलाइडी कण अंधेरे में घूमते हुए दिखाई देते हैं इस घटना के आधार पर वैज्ञानिक टंडन ने कोलाइडी विलयन में एक प्रभाव का अध्ययन किया जिसे टिंडल प्रभाव कहा गया
अर्थात कोलाइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण टिंडल प्रभाव होता है. कोलाइडी कणों का आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य से कम होता है अतः प्रकाश की किरणों के कोलाइडी कणों पर पड़ने पर वे प्रकाश की ऊर्जा का अवशोषण करके स्वयं आत्मदिप्त हो जाते हैं.
अवशोषित ऊर्जा के फिर से छोटी तरंगों के प्रकाश के रूप में प्रकीर्णन होने से नीले रंग का एक शंकु दिखता है जिसे टिंडल शंकु कहा जाता है और यह घटना टिंडल घटना कहलाती है. मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं टिंडल प्रभाव को परिभाषा के रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है
टिंडल प्रभाव की परिभाषा – Definition of Tyndall Effect in Hindi
टिंडल प्रभाव की परिभाषा – “अंधेरे में रखें कोलाइडी विलयन में जब तीव्र प्रकाश पुंज को प्रवाहित किया जाता है तो इन किरणों का मार्ग नीले प्रकाश द्वारा दृश्यमान हो जाता है इस घटना को टिंडल प्रभाव कहते हैं“
या
टिंडल प्रभाव की परिभाषा – “कोलाइडी विलयन में उपस्थित कोलाइडी कणों के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन को टिंडल प्रभाव कहा जाता है तथा दृश्यमान मार्ग को टिंडल शंकु कहा जाता है“
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टिंडल प्रभाव हिंदी में – Tyndall effect in Hindi
दोस्तों मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं टिंडल प्रभाव को प्रकाशिक गुण भी कहा जाता है. टिंडल प्रभाव को सर्वप्रथम वैज्ञानिक टिंडल ने 1869 में प्रतिपादित किया था क्योंकि कोलाइडी कणों का आकार दृश्य विकिरणों तथा पराबैंगनी किरणों की तरंगदैर्ध्य से कम होता है इस कारण कोलाइडी कण इन किरणों का प्रकीर्णन करता है जिससे इनका मार्ग देखा जा सकता है
टिंडल ने देखा कि प्रकाश का क्षेत्र, कण से काफी बड़ा है इस प्रकार सूक्ष्मदर्शी की सहायता से कोलाइडी विलयन में कोलाइडी कणों को चमकदार बिंदुओं की भांति देखा जा सकता है
आपकी जानकारी के लिए बता दूं वास्तविक विलयन के द्वारा टिंडल प्रभाव प्रदर्शित नहीं किया जा सकता क्योंकि वास्तविक विलयन में उपस्थित कणों का आकार छोटा होता है जिससे यह प्रकीर्णन नहीं कर पाते इसीलिए टिंडल प्रभाव के द्वारा किसी वास्तविक विलयन तथा कोलाइडी विलयन में अंतर स्पष्ट किया जा सकता है
संक्षेप में
दोस्तों मुझे उम्मीद है आपको टिंडल प्रभाव किसे कहते हैं? का पूर्ण ज्ञान हो गया होगा. अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर करें जोकि उनके लिए भी काफी उपयोगी है. ऐसी जानकारियों को जानने के लिए MDS Blog के साथ जरूर जुड़िए जहां कि आपको कई तरह की शिक्षात्मक जानकारियां दी जाती है