दोस्तों क्या आप दुर्गा पूजा पर निबंध (Essay on Durga Puja in Hindi) की तलाश कर रहे हैं तो आप एकदम सही जगह पर आए हैं
आज मैंने इस पोस्ट के माध्यम से आपको दुर्गा पूजा पर दो शानदार निबंध बताए है जोकि विद्यार्थियों के लिए काफी उपयोगी है. आइए बिना समय गवाएं पढ़ते हैं
दुर्गा पूजा पर निबंध 500 शब्दों में

“सभी दुखों का नाश कर
खुशियों से भर दे ये संसार
ऐसा है दुर्गा पूजा का त्यौहार”
प्रस्तावना
दुर्गा पूजा हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों में से एक है. यह प्रत्येक वर्ष बड़े ही हर्षोल्लास के साथ देवी दुर्गा के सम्मान में मनाया जाता है. देवी दुर्गा हिमालय और मैनका की पुत्री और माता सती का अवतार थी
दुर्गा पूजा की शुरुआत
यह माना जाता है कि यह पूजा पहली बार तब से शुरु हुई जब भगवान राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा से शक्ति प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा की थी
दुर्गा पूजा का महत्व
दुर्गा पूजा हिन्दू धर्म का बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सांसारिक महत्व है
“सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते”
दुर्गा पूजा से जुडी कई कथाये हैं. माँ दुर्गा ने इस दिन महिषासुर नामक असुर का संहार किया था. रामायण में कहा गया है कि भगवान राम ने दस सर वाले रावण का वध इसी दिन किया था
इस पर्व को शक्ति का पर्व कहा जाता है. माना जाता है कि माँ दुर्गा ने 10 दिन और रात के युद्ध के बाद महिषासुर नाम के राक्षस को मारा था. देवी दुर्गा के कारण लोगों को उस असुर से राहत मिली, जिसके कारण लोग उनकी पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं
किस प्रकार होती है दुर्गा पूजा
इस त्योहार पर देवी दुर्गा की पूरे नौ दिनों तक पूजा की जाती है. भक्तजन पूरे नौ दिन तक उपवास रखते हैं. वे देवी दुर्गा की मूर्ति को सजाकर प्रसाद, जल, कुमकुम, नारियल, सिंदूर आदि को सभी अपनी क्षमता के अनुसार अर्पित करके पूजा करते हैं
माना जाता है कि माता की पूजा करने से आनंद, समृद्धि आती है तथा अंधकार और बुरी शक्तियों का नाश होता है. अष्टमी व नवमी को लोग देवी को खुश करने के लिए कन्याओं को भोजन, फल और दक्षिणा देते हैं. पूजा के बाद लोग पवित्र जल में देवी की मूर्ति का विसर्जन कर देते हैं
गरबा व डांडिया प्रतियोगिता
नवरात्र में डांडिया और गरबा खेलना बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण माना गया है. कई जगह सिन्दूरखेलन का भी रिवाज है. इस पूजा के दौरान विवाहित औरते माँ के पंडाल में सिंदूर के साथ खेलती है
गरबा की तैयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है और फिर प्रतियोगिताएं रखी जाती है तथा जीतने वालों को पुरस्कृत किया जाता है
उपसंहार
हिन्दू धर्म के हर त्यौहार के पीछे सामाजिक कारण होता है. दुर्गा पूजा मनाने के पीछे भी सामाजिक कारण है. दुर्गा पूजा अनीति, अत्याचार तथा बुरी शक्तियों के नाश के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है
दुर्गा पूजा का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है. इस त्यौहार से हमें सच्चाई की सीख लेकर इसे अपने जीवन मूल्य में उतारना चाहिए
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प्रस्तावना
दुर्गा पूजा देवी माँ का एक हिंदू त्योहार है और राक्षस महिषासुर पर योद्धा देवी दुर्गा की जीत है. यह त्योहार ब्रह्मांड में ‘शक्ति’ के रूप में नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. यह बुराई पर अच्छाई की जीत को बताता है
दुर्गा पूजा भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. हिंदुओं के लिए एक त्योहार होने के अलावा, यह परिवार और दोस्तों के पुनर्मिलन और सांस्कृतिक मूल्यों और रीति-रिवाजों के समारोह का भी समय है
दुर्गा पूजा का उत्सव
दुर्गा पूजा का समारोह दस दिन का होता है इसमें भक्तों द्वारा दस दिनों का उपवास रखा जाता है. त्योहार के अंतिम चार दिन यानी सप्तमी, अष्टमी, नवमी और विजय-दशमी होते हैं. इन चार दिनों को विशेष रूप से पूरे भारतवर्ष में खासकर बंगाल में बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है
विदेशों में भी कई भक्तों द्वारा इस त्योहार को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. दुर्गा पूजा समारोह स्थान, रीति-रिवाजों और मान्यताओं के आधार पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है
कहीं त्योहार पांच दिन, कहीं सात और कहीं पूरे दस दिन का होता है. आमतौर पर इस त्योहार में उत्साह ‘षष्ठी’ यानी छठे दिन से शुरू होता है और ‘विजयादशमी’ यानी दसवें दिन पर समाप्त होता है
दुर्गा पूजा का महत्व
भारतीय संस्कृति में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है. दुर्गा पूजा एक ऐसा पावन पर्व है जो इस बात का प्रतीक है कि बुराई चाहे कितनी भी अधिक क्यों न बढ़ जाये, कितनी ही ताक़तवर क्यों न हो जाये वह कभी भी अच्छाई पर भारी नहीं पड़ सकती
बुराई और अच्छाई में से हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है यह त्यौहार हमें इसी बात का एहसास दिलाता है और हमें यह सीख देता है कि हमें हमेशा अच्छाई का साथ देना चाहिए, अच्छे कार्य करने चाहिए और बुराई से लड़ना चाहिए
माँ शक्ति का यह पावन पर्व हमें अच्छाई की शक्ति का स्मरण कराता है और हम सब में छिपी शक्ति को उजागर करता है. इसके अलावा यह त्यौहार हमें एकता का पाठ भी पढ़ाता है और हमारे अंतर्मन में आस्था, श्रृद्धा, भक्ति भाव आदि कई सद्भावनाओं को भी उजागर करता है
दुर्गा पूजा की पृष्ठभूमि
माँ दुर्गा के पिता हिमालय और माता मेनका थीं. भगवान शिव से विवाह करने के लिए बाद में माँ दुर्गा सती बन जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि दुर्गा पूजा का प्रारंभ उस समय से हुआ जब भगवान श्री राम ने रावण का वध करने के लिए माँ दुर्गा से शक्ति प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा की पूजा की थी
कई स्थानों, खासतौर पर बंगाल में इस पर्व को मनाने के लिए एक भव्य और सुंदर ‘पंडाल’ लगाया जाता है. इसके अलावा कई लोगों द्वारा घर में ही सारी व्यवस्था करके देवी की पूजा की जाती है. अंतिम दिन, वे देवी की मूर्ति को पवित्र नदी गंगा में विसर्जित करने के लिए भी जाते हैं
दुर्गा पूजा का यह पवित्र पर्व बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की जीत को दर्शाने के लिए मनाया जाता है. कई जगह यह मान्यता भी है कि इस दिन देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था
देवी दुर्गा को तीनों भगवानों – शिव, ब्रह्मा और विष्णु द्वारा राक्षस को मिटाने और दुनिया को उसकी क्रूरता से बचाने के लिए बुलाया गया था. दस दिनों तक युद्ध चला और अंत में दसवें दिन, देवी दुर्गा ने राक्षस का वध कर दिया. हम दसवें दिन को दशहरा या विजयदशमी के रूप में मनाते हैं
दुर्गा पूजा में किए जाने वाले अनुष्ठान

उत्सव महालय के समय से शुरू होता है जहां भक्त देवी दुर्गा से पृथ्वी पर आने का अनुरोध करते हैं. इस दिन, वे माँ दुर्गा की मूर्ति पर आँखें बनाते हैं और इसे चोक्खू दान कहा जाता है
देवी दुर्गा की मूर्ति को स्थापित करने के बाद, वे सप्तमी पर मूर्तियों में माँ दुर्गा की धन्य उपस्थिति को बढ़ाने के लिए अनुष्ठान करते हैं. इन अनुष्ठानों को ‘प्राण प्रतिष्ठान’ कहा जाता है
इसमें एक छोटा केले का पौधा होता है जिसे कोला बौ (केले की दुल्हन) के रूप में जाना जाता है. जिसे पास की नदी या झील में स्नान के लिए ले जाया जाता है, जिसे साड़ी पहनाई जाती है और देवी की पवित्र ऊर्जा को ले जाने के लिए उपयोग किया जाता है
त्योहार के दौरान, भक्त देवी की कई अलग-अलग रूपों में पूजा करते हैं. आठवें दिन शाम के बाद आरती की रस्म की जाती है. यह धार्मिक लोक नृत्य की परंपरा है जो देवी के सामने उन्हें प्रसन्न करने के लिए की जाती है. यह नृत्य जलते हुए नारियल के आवरण और कपूर से भरे मिट्टी के बर्तन को पकड़कर ढोल की थाप पर किया जाता है
नौवें दिन, महाआरती के साथ पूजा पूरी होती है. यह प्रमुख अनुष्ठानों और प्रार्थनाओं के अंत का प्रतीक है
त्योहार के अंतिम दिन, देवी दुर्गा अपने पति के घर वापस चली जाती हैं और देवी दुर्गा की मूर्तियों को नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाया जाता है. विवाहित महिलाएं देवी को लाल सिंदूर का पाउडर चढ़ाती हैं और इस पाउडर से खुद को चिह्नित करती हैं
उपसंहार
सभी लोग अपनी जाति और वित्तीय स्थिति के बावजूद इस त्योहार को मनाते हैं और इसका आनंद लेते हैं. दुर्गा पूजा एक बहुत ही सांप्रदायिक और नाटकीय उत्सव है
नृत्य और सांस्कृतिक प्रदर्शन इसका एक अनिवार्य हिस्सा हैं. स्वादिष्ट पारंपरिक भोजन भी त्योहार का एक बड़ा हिस्सा है. कोलकाता की सड़कें खाने-पीने की दुकानों से भरी पड़ी हैं, जहां कई स्थानीय और विदेशी मिठाइयों सहित मुंह में पानी लाने वाले खाद्य पदार्थों का आनंद लिया जा सकता है
दुर्गा पूजा मनाने के लिए पश्चिम बंगाल में सभी कार्यस्थल, शैक्षणिक संस्थान और व्यावसायिक स्थान बंद रहते हैं. कोलकाता के अलावा दुर्गा पूजा पटना, गुवाहाटी, मुंबई, जमशेदपुर, भुवनेश्वर और अन्य जगहों पर भी मनाई जाती है
इसके अलावा विदेशों में भी दुर्गा पूजा के इस पावन पर्व को धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस प्रकार यह पावन त्यौहार हमें सिखाता है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है और हमें सदैव सही मार्ग का अनुसरण करना चाहिए
FAQ’s – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
मां दुर्गा के नौ अवतार कौन-कौन से हैं ?
मां दुर्गा के नौ अवतार – मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कूष्मांडा, मां स्कंदमा, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री है
मां दुर्गा ने किसका वध किया था ?
मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था
मां दुर्गा किसका अवतार थी ?
मां दुर्गा माता सती का अवतार थी
‘Durga Puja Special Aarti Song’
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संक्षेप में
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