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दहेज प्रथा पर निबंध

Sachin Sajwan by Sachin Sajwan
in Hindi Essay

नमस्कार MDS BLOG में आपका स्वागत है क्या आप दहेज प्रथा पर निबंध – Essay on dowry in Hindi खोज रहे हैं तो आपने एक सही पोस्ट का चुनाव किया है. आज की इस पोस्ट में हम दहेज प्रथा पर निबंध कैसे लिखा जाए और दहेज प्रथा दूर करने के उपाय क्या है इन सभी विषयों पर चर्चा करेंगे आइए जानते हैं –

पाठ्यक्रम show
दहेज प्रथा पर निबंध – Essay on dowry in Hindi
प्रस्तावना
दहेज का अर्थ
दहेज प्रथा के कारण
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम
दहेज प्रथा दूर करने के उपाय
उपसंहार

दहेज प्रथा पर निबंध – Essay on dowry in Hindi

दहेज प्रथा पर निबंध - Essay on dowry in Hindi

प्रस्तावना

दहेज प्रथा के विरोध में लिखने वाले अमर साहित्यकार प्रेमचंद हैं परंतु हमने उनके विश्वास की और उनके साहित्य की हत्या कर डाली है. समाज के जिन कर्णधारों से प्रेमचंद यह आशा करते थे कि उनकी दहेज-विरोधी यथार्थ दृष्टि के सम्मान में वे दहेज का उन्मूलन कर डालेंगे, वे ही प्रथम पंक्ति के सामाजिक गण यूँ कहिए कि आज के गणमान्य नागरिक ही दहेज लेन-देन के सफल व्यापारी बने हुए हैं.

आज हम प्रेमचंद की आवाज का गला घोंटने में कितने सफल हैं, कितने कृतघ्न हैं हम उनके प्रति, यदि आत्मविश्लेषण करें तो शायद मुँह छुपाने को भी जगह न मिले परिणामस्वरूप दहेजरूपी दानव आज भारतीय समाज में विनाशलीला मचाए हुए समाज का यह कलंक निरन्तर विकृत रूप धारण करता जा रहा है. समय रहते इसका निदान है और उपचार आवश्यक है अन्यथा समाज की नैतिक मान्यताएँ नष्ट हो जाएँगी और मानव-मूल्य समाप्त हो जाएँगे

दहेज का अर्थ

सामान्यत: दहेज से तात्पर्य उन संपत्तियों तथा वस्तुओं से समझा जाता है जिन्हें विवाह के समय वधू-पक्ष की ओर से वर-पक्ष को दिया जाता है. मूलत: इसमें स्वेच्छा का भाव निहित था किंतु आज दहेज का अर्थ इससे नितांत भिन्न हो गया है

अब इससे तात्पर्य उस संपत्ति अथवा मूल्यवान् वस्तुओं से है, जिन्हें विवाह की एक शर्त के रूप में कन्या-पक्ष द्वारा वर-पक्ष को विवाह से पूर्व अथवा बाद में दिया जाता है. वास्तव में इसे दहेज की अपेक्षा वर-मूल्य कहना अधिक उपयुक्त होगा

दहेज प्रथा के कारण

दहेज प्रथा के विस्तार के अनेक कारण हैं इनमें से प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  • धन के प्रति अधिक आकर्षण
  • जीवनसाथी चुनने का सीमित क्षेत्र
  • बाल-विवाह
  • शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा
  • विवाह की अनिवार्यता

धन के प्रति अधिक आकर्षण

आज का युग भौतिकवादी युग है. समाज में धन का महत्त्व बढ़ता जा रहा है धन सामाजिक एवं पारिवारिक प्रतिष्ठा का आधार बन गया है. मनुष्य येन-केन-प्रकारेण धन के संग्रह में लगा हुआ है. वर-पक्ष ऐसे परिवार में ही सम्बन्ध स्थापित करन चाहता है जो धन-संपन्न हो तथा जिससे विवाह में अधिकाधिक धन प्राप्त हो सके

जीवनसाथी चुनने का सीमित क्षेत्र

हमारा समाज अनेक जातियाँ तथा उपजातियां में विभाजित है. सामान्यतः प्रत्येक माँ-बाप अपनी लड़की का विवाह अपनी ही जाति या अपने से उच्च-जाति के लड़के के साथ करना चाहता है. इन परिस्थितियों में उपयुक्त वर के मिलने में कठिनाई होती है फलत: वर-पक्ष की ओर से दहेज की माँग आरंभ हो जाती है

बाल विवाह

बाल-विवाह के कारण लड़के अथवा लड़की को अपना जीवनसाथी चुनने का अवसर नहीं मिलता है. विवाह-सम्बन्ध का पूर्ण अधिकार माता-पिता के हाथ में रहता है. ऐसी स्थिति में लड़के के माता-पिता अपने पुत्र के लिए अधिक दहेज की माँग करते हैं

शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा

वर्तमान युग में शिक्षा बहुत महंगी है इसके लिए पिता को कभी-कभी अपने पुत्र की शिक्षा पर अपनी सामर्थ्य से अधिक धन व्यय करना पड़ता है इस धन की पूर्ति वह पुत्र के विवाह के अवसर पर दहेज प्राप्त करके करना चाहता है

विवाह की अनिवार्यता

हिंदु धर्म में एक विशेष अवस्था में कन्या का विवाह करना पुनीत कर्त्तव्य’ माना गया है तथा कन्या का विवाह न करना ‘महापातक’ कहा गया है. प्रत्येक समाज में कुछ लड़कियाँ कुरूप अथवा विकलांग होती हैं जिनके लिए योग्य जीवनसाथी मिलना प्रायः कठिन होता है. ऐसी स्थिति में कन्या के माता-पिता वर-पक्ष को दहेज का लालच देकर अपने इस पुनीत कर्त्तव्य’ का पालन करते हैं

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम

दहेज प्रथा ने हमारे संपूर्ण समाज को पथभ्रष्ट तथा स्वार्थी बना दिया है. समाज में यह रोग इतने व्यापक रूप से फैल गया है कि कन्या के माता-पिता के रूप में जो लोग दहेज की बुराई करते हैं वे ही अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर मुँह मॉगा दहेज प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं. इससे समाज में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो गई हैं तथा अनेक नवीन समस्याएँ विकराल रूप धारण करती जा रही हैं

  • बेमेल विवाह
  • ऋणग्रस्तता
  • कन्याओं का दुःखद वैवाहिक जीवन
  • आत्महत्या
  • अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि

बेमेल विवाह

दहेज प्रथा के कारण आर्थिक रूप से दुर्बल माता-पिता अपनी पुत्री के लिए उपयुक्त वर प्राप्त नहीं कर पाते और विवश होकर उन्हें अपनी पुत्री का विवाह ऐसे अयोग्य लड़के से करना पड़ता है, जिसके माता-पिता कम दहेज पर उसका विवाह करने को तैयार हों.

दहेज न देने के कारण कई बार माता-पिता अपनी कम अवस्था की लड़कियों का विवाह अधिक अवस्था के पुरुषों से करने के लिए भी विवश हो जाते हैं

ऋणग्रस्तता

दहेज प्रथा के कारण विपक्ष की मांग को पूरा करने के लिए कई बार कन्या के पिता को ऋण भी लेना पड़ता है परिणाम स्वरूप परिवार ऋणग्रस्तता की चक्की में पिसते रहते हैं

कन्याओं का दुःखद वैवाहिक जीवन

वर- पक्ष की माँग के अनुसार दहेज न देने अथवा दहेज में किसी प्रकार की कमी रह जाने के कारण नववधू को ससुराल में अपमानित होना पड़ता है

आत्महत्या

दहेज के अभाव में उपयुक्त वर न मिलने के कारण अपने माता-पिता को चितामुक्त करने हेतु अनेक लड़कियाँ आत्महत्या भी कर लेती हैं. कभी-कभी ससुराल के लोगों के ताने सुनने एवं अपमानित होने पर विवाहित स्त्रियाँ भी अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु आत्महत्या कर लेती हैं

अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि

दहेज प्रथा के कारण कई बार निर्धन परिवारों की लड़कियों को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते आर्थिक दृष्टि से दुर्बल परिवारों की जागरूक युवतियाँ तथा निम्नस्तरीय युवकों से विवाह करने की अपेक्षा अविवाहित रहना उचित समझती हैं

दहेज प्रथा दूर करने के उपाय

दहेज प्रथा समाज के लिए निश्चित ही एक अभिशाप है. कानून एवं समाज-सुधारकों ने दहेज से मुक्ति के अनेक उपाय सुझाए हैं यहाँ पर उनके सम्बन्ध में संक्षेप में विचार किया जा रहा है

  • कानून द्वारा प्रतिबंध
  • अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन
  • युवकों को स्वावलंबी बनाया जाए
  • लड़कियों की शिक्षा
  • जीवनसाथी चुनने का अधिकार

कानून द्वारा प्रतिबंध

अनेक व्यक्तियों का विचार था कि दहेज के लेन-देन पर कानून द्वारा प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए. फलतः 9 मई, 1961 ई० को भारतीय संसद में ‘दहेज निरोधक अधिनियम’ स्वीकार कर लिया गया विवाह तय करते समय किसी भी प्रकार की शर्त लगाना कानूनी अपराध होगा, जिसके लिए उत्तरदायी व्यक्तियों को 6 मास का कारावास तथा 5 हजार रुपये तक का आर्थिक दण्ड लिया जा सकता है

अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन

अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देने से वर का चुनाव करने के क्षेत्र में विस्तार होगा तथा युवतियों के लिए योग्य वर खोजने में सुविधा होगी इससे दहेज की मांग में भी कमी आएगी

युवकों को स्वावलंबी बनाया जाए

स्वावलंबी होने पर युवक अपनी इच्छा से लड़की का चयन कर सकेंगे दहेज की मांग अधिकतर युवकों की ओर से न होकर उनके माता-पिता की ओर से होती है. स्वावलंबी युवकों पर माता-पिता का दबाव कम होने पर दहेज के लेन-देन में स्वत: कमी आएगी

लड़कियों की शिक्षा

जब युवतियाँ भी शिक्षित होकर स्वावलंबी बनेंगी तो वे अपना जीवन-निर्वाह करने में समर्थ हो सकेंगी. दहेज की अपेक्षा आजीवन उनके द्वारा कमाया गया धन कहीं अधिक होगा. इस प्रकार की युवतियों की दृष्टि में विवाह एक विवशता के रूप में भी नहीं होगा जिसका वर-पक्ष प्रायः अनुचित लाभ उठाता है

जीवनसाथी चुनने का अधिकार

प्रबुद्ध युवक-युवतियों को अपना जीवनसाथी चुनने के लिए अधिक छूट मिलनी चाहिए. शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ युवक-युवतियों में इस प्रकार का वैचारिक परिवर्तन संभव है. इस परिवर्तन के फलस्वरूप विवाह से पूर्व उन्हें एक-दूसरे के विचारों से अवगत होने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा

उपसंहार

दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है अत: इसके विरुद्ध स्वस्थ जनमत का निर्माण करना चाहिए. जब तक समाज में जागृति नहीं होगी, दहेजरूपी दैत्य से मुक्ति पाना कठिन है. राजनेताओं, समाज-सुधारकों तथा युवक-युवतियों आदि सभी के सहयोग से ही दहेज प्रथा का अंत हो सकता है

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संक्षेप में

दोस्तों मुझे उम्मीद है दहेज प्रथा पर निबंध – Essay on dowry in Hindi पर मेरे विचार आपको अच्छे लगे होंगे. अगर आप ऐसी जानकारियों में रुचि रखते हैं तो MDS BLOG के साथ जरूर जुड़िए जहां कि हर तरह की शिक्षात्मक जानकारी दी जाती है MDS BLOG पर यह पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

@MDS THANKS

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