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Home Educational Hindi Essay

मानवाधिकार दिवस पर निबंध

Sachin Sajwan by Sachin Sajwan
in Hindi Essay

Essay on Human Rights Day in Hindi : प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. संपूर्ण विश्व में 10 दिसंबर का दिन मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित है

क्या आप मानवाधिकार दिवस पर निबंध लिखना चाहते हैं तो इस पोस्ट में आपको छोटे और बडे दोनों निबंध बताए गए हैं. विद्यार्थियों के लिए यह पोस्ट काफी उपयोगी है. तो आइए पढ़ते हैं

दिवस का नामअंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस
मनाया जाता हैप्रतिवर्ष 10 दिसंबर
मनाने का उद्देश्यमानव अधिकारों की रक्षा, बढ़ावा और जागरूकता
मनाने की घोषणा10 दिसंबर 1948
पाठ्यक्रम show
मानवाधिकार दिवस पर निबंध 400 शब्दों में
प्रस्तावना
मानवाधिकार दिवस मनाने का उद्देश्य
मानवाधिकार दिवस मनाने का महत्व
उपसंहार
मानवाधिकार दिवस पर निबंध 800 शब्दों में
प्रस्तावना
मानवाधिकार दिवस का इतिहास
मानव अधिकार की आवश्यकता
मानव अधिकार के उद्देश्य
भारत में मानवाधिकार
मानवाधिकारों की वास्तविक स्थिति
उपसंहार

मानवाधिकार दिवस पर निबंध 400 शब्दों में

मानवाधिकार दिवस पर निबंध

प्रस्तावना

विश्व मानवाधिकार दिवस हर वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को सार्वभौमिक मानव अधिकार घोषणा पत्र को आधिकारिक मान्यता दी गई

जिसमें भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को खुद विशेष अधिकार दिए गए. भारत सहित तमाम देश 10 दिसंबर को अपना राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस मनाते हैं

मानवाधिकार दिवस मनाने का उद्देश्य

इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति के मानव अधिकारों की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना है. एक बेहतर कल के लिए मानवाधिकारों को जानना अत्यंत आवश्यक है. मानवाधिकार दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिसका उद्देश्य मनुष्य का सतत विकास है

मानवाधिकार दिवस मनाने का महत्व

मानव अधिकार वे विशेष अधिकार है जो हर व्यक्ति को उसके प्रतिदिन के सामान्य जीवन के हिस्से के रूप में प्रदान किये जाते है. इन्हें उन मौलिक अधिकारों के रूप में समझा जा सकता है जिसका प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण रूप से हकदार है

मानव अधिकार महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि यह अधिकार सभी मनुष्यों पर समान रूप से लागू होते हैं. किसी के साथ भी संस्कृति, धर्म, जाति, रंग या अन्य किसी भी चीज के आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है. मानवाधिकार दिवस अधिक से अधिक लोगों को अपने विशेषाधिकारों के बारे में जागरूक बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है

उपसंहार

अंततः हम कह सकते हैं कि मानवाधिकार दिवस एक नैतिक सिद्धांत या प्राकृतिक कानून है जो इस बात पर जोर देता है कि सभी मनुष्यों का मौलिक अधिकारों पर समान रूप से हक हो

मनुष्य के रूप में हमें एक-दूसरे के अधिकारों की रक्षा जरूर करनी चाहिए. एक विकसित समाज के लिए हमें अपने मानव अधिकारों का सम्मान करना अत्यंत आवश्यक है तभी राष्ट्र विकास के पथ पर अग्रसर हो सकता है

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मानवाधिकार दिवस पर निबंध 800 शब्दों में

Essay on Human Rights Day in Hindi

प्रस्तावना

मानव के रूप में मनुष्य के क्या अधिकार हों और किस सीमा तक किसी रूप में उनकी पूर्ति शासन की ओर से हो इस सम्बन्ध में मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही विवाद चला आ रहा है

सामान्यत: मानव के मौलिक अधिकारों में जीवन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, जीविका का अधिकार, वैचारिक स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतंत्र रूप से धार्मिक विश्वास का अधिकार आदि पर चर्चा की जाती है. मानव अधिकार एक विशिष्ट अधिकार है

मानवाधिकार दिवस का इतिहास

मानव अधिकार के प्रसंग में सर्वाधिक प्रसिद्ध अभिलेखों के रूप में हम सन् 1215 ई० के इंग्लैंड के मैग्नाकार्टा अभिलेख, सन् 1628 ई० के अधिकार याचिका पत्र, सन् 1679 ई० के बंदी प्रत्यक्षीकरण अधिनियम, सन् 1689 ई० के अधिकार, सन् 1789 ई० में फ्रांस की प्रसिद्ध मानव अधिकार घोषणा तथा सन् 1779 ई० की अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा को ले सकते हैं

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकार की बात सन् 1945 ई० में संयुक्त राष्ट्र में उठी सन् 1946 ई० में “मानव अधिकार आयोग” का गठन किया गया आयोग की सिफारिशों के आधार पर 10 दिसंबर 1948 ई० को संयुक्त राष्ट्र ने एक घोषणा-पत्र जारी किया

इसे अब ‘मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र‘ के नाम से जाना जाता है. सन् 1950 ई० में संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 10 दिसंबर के दिन को मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाने को घोषणा की

मानव अधिकार की आवश्यकता

लोकतंत्र की अवधारणा मानव अधिकारों को सुनिश्चित करने की बढ़ती हुई आवश्यकता के साथ स्पष्ट रूप से जुड़ी हुई है. इसके अभाव में न तो कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और न ही सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है

मानव अधिकारों की सुरक्षा के अभाव में जनतंत्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. एक तानाशाही के अंतर्गत मूल मानव अधिकारों तथा स्वतंत्रता का लोप हो जाता है. सैनिक एवं प्रतिक्रियावादी शासकों द्वारा मानवीय अधिकारों के दुरुपयोग ने ही जनसाधारण में एक नवीन जागृति उत्पन्न की

जहाँ कहीं भी मानव अधिकारों को नकारा गया है वहीं अन्याय, क्रूरता तथा अत्याचार का नग्न तांडव देखा गया है, मानवता बुरी तरह से अपमानित हुई है और जनमानस की दशा निरंतर बिगड़ती गई है

मानव अधिकार के उद्देश्य

संयुक्त राष्ट्र के विधान के अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि उसका एक उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय रूप ही अंतर्राष्ट्रीय समस्या के समाधान तथा जाति, लिंग, भाषा या धर्म के सब प्रकार के भेदभाव के बिना मानव अधिकारों, मौलिक अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं के संवदधन व प्रोत्साहन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की प्राप्ति करना होगा

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र की ‘आर्थिक सामाजिक परिषद्’ ने सन् 1946 ई० में मानव अधिकार आयोग की स्थापना की थी. आयोग की संस्तुति के आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने जो मानवाधिकार घोषणा-पत्र जारी किया और उसमें जिन मानवाधिकारों की चर्चा की गई, उन्हें मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने सन् 1965, 1976 तथा 1985 ई० में तीन विभिन्न संविदा-पत्र जारी किए

विश्व में सर्वत्र इस दृष्टि से सजगता दिखाई देती है कि संपूर्ण मानवता को अधिकार सुलभ होने चाहिए, लेकिन व्यवहार में स्थिति संतोषजनक नहीं है. आज विश्व के कई देशों में मानव अधिकारों का हनन किया जा रहा है

भारत में मानवाधिकार

युक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुरूप ही भारत ने भी राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार आयोग की नियुक्ति की है तथा इसके साथ-साथ राज्यों में भी मानव अधिकार आयोग की स्थापना की है, जिससे कि मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो सके

इस दृष्टि से भारत में 44वें गणतंत्र वर्ष में संसद द्वारा ‘मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993, 1994 का अधिनियम संख्या 10, 8 जनवरी, 1994 ई० पारित किया गया जिसका उद्देश्य मानवाधिकारों के अधिक अक्षय संरक्षण के लिए तथा उससे संबद्ध कर उसे आनुषंगिक मामलों के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग तथा मानवाधिकार न्यायालयों के गठन हेतु विविध प्रकार के प्रावधान करना है

इस अधिनियम की धारा 2 में मानवाधिकार की परिभाषा दी गई है. मानवाधिकारों में अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों में समाहित एवं भारतीय संविधान द्वारा प्रत्याभूत जीवन, स्वतंत्रता, समानता और वैयक्तिक गरिमा से संबद्ध अधिकारों को सम्मिलित किया गया है

इसका मूललक्ष्य मानव जीवन और उसकी गरिमा को सुरक्षा प्रदान करना है. इस अधिनियम में 8 अध्याय हैं अध्याय 1 में अधिनियम की प्रारंभिक जानकारी तथा विभिन्न शब्दों की परिभाषाएँ दी गई हैं अध्याय 2 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन, अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति, उनकी पदावधि उनके द्वारा कार्यों का निर्वहन करना तथा उनकी सेवा श्तों आदि का विस्तृत उल्लेख है

अध्याय 4 में शिकायतों की जाँच की प्रक्रिया और जाँच के बाद उठाए जाने वाले कदमों का उल्लेख है. अध्याय 5 राज्य मानवाधिकार आयोग से सम्बन्धित है. अध्याय 6 में मानवाधिकार न्यायालयों के प्रावधान का उल्लेख है. अध्याय 7 वित्त, लेखा एवं लेखा परीक्षा से सम्बन्धित है

अंतिम अर्थात् अध्याय 8 ‘विविध’ शीर्षकवाला है जिसमें मानवाधिकार आयोग का कार्यक्षेत्र, केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा नियम बनाने की शक्तियों आदि का उल्लेख किया गया है

मानवाधिकारों की वास्तविक स्थिति

इसमें संदेह नहीं है कि मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, संयुक्त राष्ट्र की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है. परंतु जहाँ तक मानवाधिकारों की सुरक्षा का प्रश्न है यह घोषणा कोरा आदर्शवाद ही सिद्ध हुई है. इसको व्यवहार में लाने में अब भी पर्याप्त कठिनाइयाँ बनी हुई हैं

मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र पर अनेक राष्ट्रों ने हस्ताक्षर तो कर दिए हैं, परंतु उनको व्यावहारिक बनाने के लिए अभी तक उनका अनुमोदन नहीं किया है. जिन राष्ट्रों ने उनका अनुमोदन भी कर दिया है, उन्हें भी अधिकारों को लागू करने के लिए बाध्य करने का कोई प्रावधान नहीं है.

वास्तव में ये अधिकार तो मात्र नैतिकता के मानदंड हैं, जिन्हें स्वीकार करना पूर्ण रूप से राज्य की इच्छा पर निर्भर करता है. यदि कोई राज्य इस घोषणा-पत्र की व्यवस्था के विपरीत आचरण करता है तो उसे इन अधिकारों को अपने नागरिकों को प्रदान करने के लिए किसी भी रूप में हस्तक्षेप करके बाध्य नही किया जा सकता

यह व्यवस्था तो अवश्य है कि यदि कोई राज्य मानवाधिकारों का भीषण दमन करता है तो उसकी महासभा में भत्त्सना की जा सकती हैं और उसके विरुद्ध आर्थिक व राजनैतिक बहिष्कार की नीति अपनाई जा सकती है, परंतु यह व्यवस्था भी अधिक कारगर सिद्ध नहीं हुई है

विश्व के सभ्य देश भी अपने यहाँ मानवीय अधिकारों को सुरक्षा देने में विफल रहे. अविकसित देशों की तो बात ही क्या है, आज भी कुछ सभ्य देश ऐसे है जहाँ की सरकारें अपने नागरिकों को इन अधिकारों से वंचित रखे हुए हैं ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट (1922) में कहा गया है कि विश्व के 120 देशों में मानवीय अधिकारों का हनन हो रहा है

बोस्निया, गिनी, दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया आदि देशों में आज भी नागरिकों के साथ पशुवत् व्यवहार किया जा रहा है. मुस्लिम राष्ट्रों में आज भी अमानुषिक दंड दिए जाने का प्रावधान है. राजनैतिक बंदियों के साथ जेलों में जो अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है, वह वर्णनातीत ही है

संक्षेप में इतना कहना ही पर्याप्त है कि आज मानवता की दुहाई देकर विभिन्न देशों की सरकारे मानवाधिकारों का खुलकर उल्लंघन कर रही हैं. फिर भी “मानवाधिकार का अंतर्राष्ट्रीय संघ” तथा “एमनेस्टी इंटरनेशनल” जैसे गैर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन मानवाधिकारों की सुरक्षा में सतत प्रयत्नशील हैं

उपसंहार

भारत हमेशा से मानव अधिकारों के प्रति सजग रहा है. वह विश्वमंच पर मानव अधिकारों का समर्थन करता रहा है. मानव अधिकारों का हनन तथा उनका उल्लंघन विश्व के समक्ष एक गंभीर समस्या बनी हुई है. यह आधुनिक सभ्यता पर लगा एक दाग है यदि मानव अधिकारों के उल्लंघन को नहीं रोका गया तो निश्चित ही यह मानवता के विनारा का कारण बनेगा

FAQ’s – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

मानवाधिकार दिवस कब मनाया जाता है?

दुनिया भर में मानव अधिकार दिवस प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है

मानवाधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है ?

मानवाधिकार दिवस मानव अधिकारों की रक्षा, बढ़ावा और जागरूकता के लिए मनाया जाता है

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संक्षेप में

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