Pradushan Par Nibandh : प्रदूषण संपूर्ण विश्व की एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है. दुनिया का हर देश इस समस्या से बहुत परेशान है और इस समस्या को समाप्त करने का हर संभव प्रयास कर रहा है
क्या आप प्रदूषण की समस्या पर निबंध लिखना चाहते हैं तो आप एकदम सही जगह पर उपलब्ध हुए हैं. आज मैंने आपको प्रदूषण पर 1000 शब्दों में निबंध बताया है जोकि 10th से लेकर UPSC तक के स्टूडेंट्स के लिए काफी हेल्पफुल है. तो आइए पढ़ते हैं
प्रदूषण पर निबंध – Essay on Pollution in Hindi

प्रस्तावना
चौदहवीं शताब्दी में मुहम्मद तुगलक के राजकाल में इस्लामी दुनिया का प्रसिद्ध यात्री इब्नबतूता भारत आया था. अपने संस्मरणों में उसने गंगाजल की पवित्रता और निर्मलता का उल्लेख किया है
उसने लिखा है कि मुहम्मद तुगलक ने जब दिल्ली छोड़कर दौलताबाद को अपनी राजधानी बनाया तो उसकी अन्य प्राथमिकताओं में अपने लिए गंगा के जल का प्रबंध भी सम्मिलित था
गंगाजल को ऊँट, घोड़ों और हाथियों पर लादकर दौलताबाद पहुँचाने में डेढ़-दो महीने लगते थे कहा जाता है कि गंगाजल तब भी साफ और मीठा बना रहता था
तात्पर्य यह हैं कि गंगाजल हमारी आस्थाओं और विश्वासों का प्रतीक इसी कारण बना था क्योंकि वह सभी प्रकार के प्रदूषणों से मुक्त था
किंतु अनियंत्रित औद्योगीकरण, हमारे अज्ञान एवं लोभ की प्रवृत्ति ने देश की अन्य नदियों के साथ गंगाजल को भी प्रदूषित कर दिया है
वैज्ञानिकों का विचार है कि तन-मन की सभी बीमारियों को धो डालने की उसकी औषधीय शक्तियाँ अब समाप्त होती जा रही हैं
यदि प्रदूषण इसी गति से बढ़ता रहा तो गंगाजल के शेष गुण भी शीघ्र ही नष्ट हो जाएँगे और तब ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ वाला मुहावरा गलत साबित हो जाएगा
प्रदूषण का अर्थ
प्रदूषण वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं में होने वाला वह अवांछनीय परिवर्तन है जो मनुष्य और उसके लिए लाभदायक दूसरे जंतुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थानों तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है
जीवधारी अपने विकास और व्यवस्थित जीवनक्रम के लिए एक संतुलित वातावरण पर निर्भर रहते हैं. सामान्य रूप से संतुलित वातावरण में प्रत्येक घटक एक निश्चित मात्रा में उपस्थित रहता है
लेकिन कभी-कभी वातावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा कम अथवा अधिक हो जाया करती है या वातावरण में कुछ हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है
परिणामतः वातावरण दूषित हो जाता है जो जीवधारियों के लिए किसी-न-किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है इसे ही प्रदूषण कहते हैं
प्रदूषण के प्रकार
प्रदूषण की समस्या का जन्म जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ हुआ है. विकासशील देशों में औद्योगिक एवं रासायनिक कचरे ने जल ही नहीं, वायु और पृथ्वी को भी प्रदूषित किया है
भारत जैसे देश में तो घरेलू कचरे और गंदे जल की निकासी का प्रश्न ही विकराल रूप से खड़ा हो गया है. विकसित और विकासशील सभी देशों में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण विद्यमान हैं. इनमें से कुछ प्रमुख प्रकार के प्रदूषण निम्नलिखित हैं
- वायु प्रदूषण
- जल प्रदूषण
- रेडियोधर्मी प्रदूषण
- ध्वनि प्रदूषण
- रासायनिक प्रदूषण
वायु प्रदूषण
स्वच्छ वायुमंडल में विभिन्न प्रकार की गैसे एक विशेष अनुपात में उपस्थित होती हैं. जीवधारी अपनी क्रियाओं द्वारा वायुमंडल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइ-ऑक्साइड का संतुलन बनाए रखते हैं. अपनी श्वसन प्रक्रिया द्वारा हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइ-ऑक्साइड छोड़ते रहते हैं
हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइ-ऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन निष्कासित करते रहते हैं. इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइ-ऑक्साइड का संतुलन बना रहता है, किंतु मानव अपनी अज्ञानता और आवश्यकता के नाम पर इस संतुलन को बिगाड़ता रहता है इसे ही वायु प्रदूषण कहते हैं
वायु-प्रदूषण का मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इससे श्वास सम्बन्धी बहुत-से रोग हो जाते हैं इनमें फेफड़ों का कैंसर, दमा और फेफड़ों से सम्बन्धित दूसरे रोग सम्मिलित हैं
वायु में विकिरित अनेक धातुओं के कण भी बहुत से रोग उत्पन्न करते हैं. सीसे के कण विशेष रूप से नाड़ीमंडल सम्बन्ध रोग उत्पन्न करते हैं कैडमियम श्वसन-विष का कार्य करता है, जो रक्तदाब बढ़ाकर हृदय सम्बन्धी बहुत-से रोग उत्पन्न कर देता है
नाइट्रोजन ऑक्साइड से फेफड़ों, हृदय और आँखों के रोग हो जाते हैं. ओजोन नेत्र-रोग, खाँसी एवं सीने में दर्द उत्पन्न करती है. इसी प्रकार प्रदूषित वायु एग्जीमा तथा मुंहासे आदि अनेक रोग उत्पन्न करती है
जल प्रदूषण
सभी जीवधारियों के लिए जल बहुत महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है पौधे भी अपना भोजन जल के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं. जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्त्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं. यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है
“केंद्रीय जल-स्वास्थ्य इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान” के अनुसार भारत में प्रति 1,00,000 व्यक्तियों में से 360 व्यक्तियों की मृत्यु आंत्रशोथ (टायफाइड, पेचिश आदि) से होती है जिसका कारण अशुद्ध जल है. शहरों में लोगों के लिए भी शत-प्रतिशत स्वास्थ्यकर पेयजल का प्रबंध नहीं है
देश के अनेक शहरों में पेयजल किसी निकटवर्ती नदी से लिया जाता है और प्रायः उसी नदी में शहर के मल-मूत्र और कचरे तथा कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित कर दिया जाता है. ऐसे क्रियाकलापों से ही हमारे देश की अधिकांश नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है
रेडियोधर्मी प्रदूषण
परमाणु शक्ति उत्पादन केंद्रों और परमाणु परीक्षण के फलस्वरूप जल, वायु तथा पृथ्वी का प्रदूषण निरंतर बढ़ता जा रहा है. यह प्रदूषण आज की पीढ़ी के लिए ही नहीं वरन् आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होगा
विस्फोट के समय उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमंडल की बाह्य परतों में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ पर वे ठंडे होकर संघनित अवस्था में बूंदों का रूप ले लेते हैं और बहुत छोटे-छोटे धूल के कणों के रूप में वायु के झोंको के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं
द्वितीय महायुद्ध में नागासाकी तथा हिरोशिमा में हुए परमाणु बम के विस्फोट से बहुत से मनुष्य अपंग हो गए थे. इतना ही नहीं, इस प्रकार के प्रभावित क्षेत्रों की भावी संतति भी अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो गई
ध्वनि प्रदूषण
अनेक प्रकार के वाहन जैसे मोटर कार, वस, जेट विमान, ट्रैक्टर, लाउड्स्पीकर, बाजे एवं कारखानों के सायरन व विभिन्न प्रकार की मशीनों आदि से ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है. ध्वनि की लहरें जीवधारियों की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं
अधिक तेज-ध्वनि से मनुष्य के सुनने की शक्ति का ह्रास होता है और उसे ठीक प्रकार से नींद भी नहीं आती यहाँ तक कि ध्वनि-प्रदूषण के प्रभावस्वरूप स्नायुतंत्र पर कभी-कभी इतना दबाव पड़ जाता है कि पागलपन का रोग उत्पन्न हो जाता है
रासायनिक प्रदूषण
प्रायः कृषक अधिक पैदावार के लिए कीटनाशक, आअपतृणनाशक और रोगनाशक दवाइयों तथा रसायनों का प्रयोग करते हैं इनका स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. आधुनिक पेस्टीसाइड्स का अंधाधुंध प्रयोग भी लाभ के स्थान पर हानि ही पहुँचा रहा है
जब ये रसायन वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों द्वारा सागर में पहुँच जाते हैं तो ये समुद्री जीव-जंतुओं तथा वनस्पति पर घातक प्रभाव डालते हैं इतना ही नहीं किसी-न-किसी रूप में मानव शरीर भी इनसे प्रभावित होता है
प्रदूषण पर नियन्त्रण
पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण को रोकने व उसके समुचित संरक्षण के लिए विगत कुछ वर्षों से समस्त विश्व में एक नई चेतना उत्पन्न हुई है
औद्योगीकरण से पूर्व यह समस्या इतनी गंभीर कभी नहीं हुई थी और न इस परिस्थिति की ओर वैज्ञानिकों व अन्य लोगों का उतना ध्यान ही गया था, किन्तु औद्योगीकरण और जनसंख्या दोनों की वृद्धि ने संसार के सामने प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न कर दी है
प्रदूषण को रोकने के लिए व्यक्तिगत और सरकारी दोनों ही स्तरों पर प्रयास आवश्यक हैं. जल-प्रदूषण के निवारण एवं नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने सन् 1974 ई० से ‘जल -प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम’ लागू किया है
इसके अंतर्गत एक ‘केंद्रीय बोर्ड’ व सभी प्रदेशों में ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ गठित किए गए हैं इन बोर्डों ने प्रदूषण नियंत्रण की योजनाएँ तैयार की हैं तथा औद्योगिक कचरे के निस्तारण के लिए भी मानक निर्धारित किए हैं
उद्योगों के कारण उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय यह लिया है कि नए उद्योगों को लाइसेंस दिए जाने से पूर्व उन्हें औद्योगिक कचरे के निस्तारण की समुचित व्यवस्था तथा पर्यावरण विशेषज्ञों से स्वीकृति भी प्राप्त करनी होगी
इसी प्रकार उन्हें धुएँ तथा अन्य प्रदूषण फैलाने वाले अन्य अपशिष्टों के समुचित ढंग से निस्तारण और उसकी व्यवस्था का भी दायित्व लेना होगा. वनों की अनियंत्रित कटाई को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए हैं इस बात के प्रयास किए जा रहे हैं कि नए वनक्षेत्र बनाए जाएँ और जनसामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए
पर्यावरण के प्रति जागरूकता से ही हम आने वाले समय में और अधिक अच्छा एवं स्वास्थ्यप्रद जीवन व्यतीत कर सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को प्रदूषण के अभिशाप से मुक्ति दिला सकेंगे
उपसंहार
जैसे-जैसे मनुष्य अपनी वैज्ञानिक शक्तियों का विकास करता जा रहा है प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है. विकसित देशों द्वारा वातावरण का प्रदूषण सबसे अधिक बढ़ रहा है
यह एक ऐसी समस्या है जिसे किसी विशिष्ट क्षेत्र या राष्ट्र की सीमाओं में बाँधकर नहीं देखा जा सकता. यह विश्वव्यापी समस्या है इसलिए सभी राष्ट्रों का संयुक्त प्रयास ही इस समस्या से मुक्ति पाने में सहायक हो सकता है
FAQ’s – प्रदूषण पर निबंध
प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं ?
प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं. लेकिन मुख्यतः ये पांच प्रकार के हैं जोकि वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और रासायनिक प्रदूषण है
हम प्रदूषण को कैसे रोक सकते है ?
वैसे तो प्रदूषण को रोकने के बहुत सारे उपाय है. लेकिन हम अधिक से अधिक पेड़ लगाकर और आस-पास की स्वच्छता से प्रदूषण को कम कर सकते हैं
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संक्षेप में
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