Hindi Essay

पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध

क्या आप भी पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध लिखना चाहते हैं तो आप एकदम सही जगह पर आए हैं. पुस्तक की आत्मकथा से अभिप्राय है कि पुस्तक स्वयं को बयां कर रही है. किस प्रकार इस टॉपिक पर आसान भाषा में निबंध लिखा जाए आज आपको जानने को मिलेगा. तो आइए पढ़ते हैं

पुस्तक की आत्मकथा – Pustak ki Atmakatha in Hindi

पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध

“ज्ञान का स्वरूप हूँ, शिक्षा की फैलाती धूप हूँ
मैं पुस्तक हूँ, माँ सरस्वती का दूजा रूप हूँ”

मैं पुस्तक हूं. मैं ज्ञान का भंडार हूँ. मुझे पढ़कर ही मनुष्य ज्ञान रूपी सीढ़ियों पर चढ़कर विद्वान बनता है. मैं मनुष्य को अज्ञान रूपी अंधेरे से निकालकर प्रकाश में ले जाती हूँ

मैं भिन्न-भिन्न भाषाओं और विषयों पर लिखी जाती हूं. मैं व्यक्ति को धर्म का पाठ भी पढ़ाती हूँ और ज्ञान-विज्ञान की बातें भी समझाती हूँ

प्राचीन समय से ही ज्ञान की सारी बातें मुझमें लिख कर संरक्षित कर दी जाती हैं ताकि आने वाले समय में कोई भी उसे पढ़ सके और उससे लाभ प्राप्त कर सके

आज के समय में भी मेरे माध्यम से सभी ऋषि मुनियों द्वारा लिखा हुआ ज्ञान पढ़ सकते हैं

मैं शिक्षकों और गुरुओं के द्वारा भी पढ़ाई जाती हूँ और मुझे सब खुद भी पढ़ लेते हैं. बच्चा, बड़ा हर कोई मुझे पढ़ता है. मुझे पढ़कर ही व्यक्ति ज्ञानी और सभ्य बनता है और देश, समाज के हित के लिए कुछ कर पाता है

देश का भविष्य नन्हे-नन्हे बच्चे मुझे पढ़कर ही अपनी शिक्षा के सफर की शुरुआत करते हैं. धीरे-धीरे मुझसे ज्ञान प्राप्त करते हुए एक दिन वह ज्ञानी बन देश को तरक्की के रास्ते पर आगे ले जाते हैं

केवल बच्चे ही नहीं बल्कि हर उम्र का व्यक्ति मुझसे ज्ञान प्राप्त कर सकता है, अच्छी अच्छी बातें सीख सकता है. मुझे पढ़कर व्यक्ति के जीवन को नई दिशा मिल सकती है. मुझे पढ़कर व्यक्ति का दृष्टिकोण सकारात्मक हो जाता है

कुछ लोग मुझे शौक के कारण पढ़ते हैं, कुछ ज्ञान प्राप्ति हेतु तो कुछ मनोरंजन करने हेतु भी मुझे पढ़ते हैं. मुझे पढ़ने का कारण चाहे जो भी हो मैं हर किसी को कुछ ना कुछ बेहतर ही सीखाने की कोशिश में लगी रहती हूं

आज विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि मुझमें ज्ञान संरक्षित करने की बजाए इंटरनेट पर भिन्न भिन्न रूपों में मानव ज्ञान को संरक्षित करने लगा है. लेकिन बहुत से लोगों का आज भी ये मानना है कि पुस्तक को पढ़कर कुछ सीखने में जो आनन्द है वो और कहां?

किंतु नई पीढ़ी को तो नई तकनीक ही अधिक लुभावनी लगती है. वह तो समय के साथ परिवर्तन ही चाहती है. मैं इस नए युग का सम्मान करते हुए नई तकनीक को स्वीकार करती हूँ

किंतु मैं तो अपने पुस्तक के स्वरूप में ही अधिक खुश हूं. जिस प्रकार मैं सदियों से मानव सभ्यता को ज्ञान प्रदान करती आई हूं उसी प्रकार आगे भी मुझे पढ़ने वाले हर इंसान का ज्ञान वर्धन ही करती रहूंगी

“करोगे जो मेरा सम्मान
बढ़ाऊं मैं तुम्हारा ज्ञान”

Read More :

संक्षेप में

पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध आपके लिए कितना उपयोगी था कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं. यदि आपको लगता है कि इस निबंध में और सुधार की आवश्यकता है तो अपने सुझाव हमारे साथ जरूर रखें जिससे कि हम एक बेहतर Content आपको दे सकें

यह पोस्ट कितनी उपयोगी थी ?

Average rating / 5. Vote count:

अब तक कोई वोट नहीं, इस पोस्ट को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें

MDS Thanks 😃

पोस्ट अच्छी लगी तो सोशल मीडिया पर हमें फॉलो करें

हमें खेद है कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी नहीं थी !

हमें बताएं कि हम इस पोस्ट को कैसे बेहतर बना सकते हैं ?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker