दोस्तों क्या आप विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध (Vidyarthi aur anushasan par nibandh) खोज रहे हैं तो आज कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी होगी
इस पोस्ट में विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध तथा बताया गया है कि छात्र असंतोष के क्या कारण है जिसके फलस्वरूप अनुशासनहीनता होती है. तो आइए जानते हैं
विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध
प्रस्तावना
हमारे जीवन में अनुशासन का एक अलग ही महत्व है. अनुशासन जीवन के उस शब्द को कहा जाता है जो कि हमें नियमों का पालन करना सिखाता है मनुष्य समाज में रहता है और सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य को अनुशासन की आवश्यकता होती है
हमारे जीवन काल में अनुशासन एक मूल्यवान चीज है. चाहे कॉलेज हो, स्कूल हो, घर हो, कार्यालय हो या फिर कोई अन्य जगह हो सभी जगह अनुशासन मूल्यवान है
अनुशासन व्यक्ति की शांति जीवन जीने की सबसे बड़ी आवश्यकताओं में से एक है. आधुनिक युग में अनुशासन का पालन न करने पर हमारा जीवन अस्तव्यस्त हो सकता है
अनुशासन का महत्व
सामाजिक प्राणी होने के नाते अनुशासन हमारे लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण चीज है इसके बिना जीवन बेकार सा लगता है क्योंकि बिना किसी योजना के किसी कार्य को सफल करने में कोई आनंद नहीं आता
यदि हम सही तरीकों से जीवन व्यतीत या शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो अनुशासन की कीमत हमारे लिए बहुत अधिक है अनुशासन दो शब्दों से बना है अनु+शासन यानी कि जीवन में नियमों का नियमित पालन करना अनुशासन कहलाता है. लेकिन जीवन में यह असंतोष की भांति पनप रहा है
देखा जाए तो मानव स्वभाव में विद्रोह की भावना स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है जो आशाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति न होने पर ज्वालामुखी के समान फूट पड़ती है जिससे कि छात्रों में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है यानी कि अनुशासनहीनता होने लगती है
छात्रों में अनुशासनहीनता के कारण
हमारे देश में विशेषकर युवा-पीढ़ी में प्रबल असंतोष की भावना विद्यमान है. छात्रों में व्याप्त असंतोष की इस प्रबल भावना के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण इस प्रकार हैं
असुरक्षित और लक्ष्यहीन भविष्य – आज छात्रों का भविष्य सुरक्षित नहीं है. शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि से छात्र असंतोष का बढ़ना स्वाभाविक है इसी के कारण असंतोष उत्पन्न हो रहा है
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली – हमारी शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है. वह न तो अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करती है और न ही छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान देती है. परिणामतः छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता छात्रों का उद्देश्य केवल परीक्षा उत्तीर्ण करके डिग्री प्राप्त करना ही रह गया है. ऐसी शिक्षा-व्यवस्था के परिणामस्वरूप असंतोष बढ़ना स्वाभाविक ही है
कक्षा में छात्रों की अधिक संख्या – विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है जो कि इस सीमा तक पहुँच गई है कि कॉलेजों के पास कक्षाओं तक के लिए पर्याप्त स्थान नहीं रह गए हैं. अन्य साधनों यथा-प्रयोगशाला, पुस्तकालयों आदि का तो कहना ही क्या? जब कक्षा में छात्र अधिक संख्या में रहेंगे और अध्यापक उन पर उचित रूप से ध्यान नहीं देंगे तो उनमें असंतोष का बढ़ना स्वाभाविक ही है
पाठ्य सहगामी क्रियाओं का अभाव – पाठ्य सहगामी क्रियाएँ छात्रों को आत्माभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करती हैं. इन कार्यों के अभाव में छात्र मनोरंजन के निष्क्रिय साधन अपनाते हैं अतः छात्र असंतोष का एक कारण पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का अभाव भी है
घर और विद्यालय का दूषित वातावरण – कुछ परिवारों में माता-पिता बच्चों पर कोई ध्यान नहीं देते और उन्हें समुचित स्नेह से वंचित रखते हैं. आजकल अधिकांश विद्यालयों में छात्रों की समुचित शिक्षा-दीक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता दूषित पारिवारिक और विद्यालयीय वातावरण में बच्चे दिग्भ्रमित हो जाते हैं. ऐसे बच्चों में असंतोष की भावना का उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है
दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली – हमारी परीक्षा प्रणाली छात्र के वास्तविक ज्ञान का मूल्यांकन करने में सक्षम नहीं है. कुछ छात्र तो रटकर उत्तीर्ण हो जाते हैं और कुछ को उत्तीर्ण करा दिया जाता है इससे छात्रों में असंतोष उत्पन्न होता है
छात्र गुट – राजनैतिक भ्रष्टाचार के कारण कुछ छात्रों ने अपने गुट बना लिए हैं. वे अपने मन के आक्रोश और विद्रोह को तोड़-फोड़, चोरी, लूटमार आदि करके शांत करते हैं
गिरता हुआ सामाजिक स्तर – आज समाज में मानव-मूल्यों का हृरास हो रहा है. प्रत्येक व्यक्ति आदर्शों को हेय समझता है. उनमें भौतिक स्तर ऊँचा करने की होड़ मची है. नैतिकता और आध्यात्मिकता का लोप हो गया है. ऐसी स्थिति में छात्रों में असंतोष का पनपना स्वाभाविक है
आर्थिक समस्याएँ – आज स्थिति यह है कि अधिकांश अभिभावकों के पास छात्रों की शिक्षा आदि पर व्यय करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है. बढ़ती हुई महँगाई के कारण अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति भी उदासीन होते जा रहे हैं. परिणामस्वरूप छात्रों में असंतोष बढ़ रहा है
निर्देशन का अभाव – छात्रों को कुमार्ग पर जाने से रोकने के लिए समुचित निर्देशन का अभाव भी हमारे देश में व्याप्त छात्र असंतोष का प्रमुख कारण है. यदि छात्र कोई अनुचित कार्य करते हैं तो कहीं-कहीं तो उन्हें इसके लिए और भी बढ़ावा दिया जाता है. इस प्रकार उचित मार्गदर्शन के अभाव में वे पथभ्रष्ट हो जाते हैं
अनुशासनहीनता को दूर करने के उपाय
छात्र असंतोष की समस्या के निदान के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं –
शिक्षा व्यवस्था में सुधार – हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों को जीवन के लक्ष्यों को समझने और आदर्शों को पहचानने की प्रेरणा दे सके मात्र रटकर परीक्षा उत्तीर्ण करने को ही छात्र अपना वास्तविक ध्येय नहीं समझ पाते हैं
सीमित प्रवेश – विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या निश्चित की जानी चाहिए जिससे अध्यापक प्रत्येक छात्र के ऊपर अधिक-से-अधिक ध्यान दे सकें क्योंकि अध्यापक ही छात्रों को जीवन के सही मार्ग की ओर अग्रसर कर सकते हैं. ऐसा होने से छात्र असंतोष स्वतः ही समाप्त हो जाएगा
आर्थिक समस्याओं का निदान – छात्रों की आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए
- निर्धन छात्रों को ज्ञानार्जन के साथ-साथ धनार्जन के अवसर भी दिए जाएँ
- शिक्षण संस्थाएँ छात्रों के वित्तीय भार को कम करने में सहायता दें
- छात्रों को रचनात्मक कार्यों में लगाया जाए
- शिक्षण संस्थाओं को सामाजिक केंद्र बनाया जाए
- छात्रों को व्यावसायिक मार्गदर्शन प्रदान किया जाए
आवश्यकतानुसार कार्य – छात्र असंतोष को दूर करने के लिए आवश्यक है कि छात्रों को उनकी आवश्यकतानुसार कार्य प्रदान किए जाएँ. किशोरावस्था में छात्रों को समय-समय पर समाज-सेवा हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. सामाजिक कार्यों के माध्यम से उन्हें अवकाश का सदुपयोग करना सिखाया जाए
छात्रों को राजनीति से दूर रखा जाए – छात्रों को दलगत राजनीति से दूर रखा जाए इसके लिए सभी राजनैतिक दलों को निश्चित करना होगा कि वे छात्रों को अपनी राजनीति का मुहरा नहीं बनाएंगे
छात्रों में जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना – छात्र असंतोष दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों में सार्वभौम जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना की जाए इसके लिए छात्रों में निम्नलिखित गुणों का विकास किया जाना चाहिए
- धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का एक अंग बनाया जाए
- विद्यालय के कार्य प्रार्थना सभा से आरंभ हों
- इतिहास का शिक्षण वैज्ञानिक ढंग से हो
- राष्ट्रीय उत्सवों को उत्साह के साथ मनाया जाए
- छात्रों को जीवन की वास्तविकता का बोध कराया जाए
- छात्रों में सहयोग तथा स्वस्थ प्रतियोगिता के विकास की भावना को विकसित किया जाए
सामाजिक स्थिति में सुधार युवा – असंतोष की समाप्ति के लिए सामाजिक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन लाना आवश्यक है. अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने भौतिक स्तर को ऊँचा उठाने की आकांक्षा छोड़कर अपने बच्चों की शिक्षा आदि पर अधिक ध्यान दें तथा समाज में पनप रही कुरीतियों एवं भ्रष्टाचार आदि को मिलकर समाप्त करें
उपसंहार
इस प्रकार हम देखते हैं कि छात्र असंतोष के लिए संपूर्ण रूप से छात्रों को ही उत्तरदायी नहीं समझा जा सकता. युवा समुदाय में इस असंतोष को उत्पन्न करने के लिए भारतीय शिक्षा-व्यवस्था की विसंगतियाँ अधिक उत्तरदायी हैं.
फिर भी शालीनता के साथ अपने असंतोष को व्यक्त करने में ही सज्जनों की पहचान होती है. तोड़-फोड़ और विध्वंसकारी प्रवृत्ति किसी के लिए भी कल्याणकारी नहीं होती जिससे कि अनुशासनहीनता होती है
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संक्षेप में
दोस्तों मुझे उम्मीद है आपको विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध – Essay on Student and Discipline in Hindi अच्छा लगा होगा. अगर आपको यह निबंध पसंद आया है तो इसे जरूर शेयर कीजिएगा
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