नमस्कार दोस्तों क्या आप विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध (Essay on student and politics in Hindi) खोज रहे हैं तो यह पोस्ट आपके लिए एकदम सही है. इस पोस्ट के माध्यम से आप विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध के बारे में जान सकते हैं
यह निबंध छात्र वर्ग के लिए काफी उपयोगी है जो कि उन्हें भविष्य में राजनीति का सही उपयोग तथा विद्या का सही उपयोग करना सिखाएगा तो आइए अब हम विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध जानते हैं
विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध – Essay on Student or Politics
प्रस्तावना
विद्यार्थी जीवन मुख्यतया विद्या की प्राप्ति के लिए है. विद्या प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी को विभिन्न विषयों का अध्ययन करना पड़ता है इनमें राजनीति विज्ञान भी एक विषय होता है
यह जरूरी नहीं कि राजनीति विज्ञान पढ़ने वाला विद्यार्थी राजनीति में भी सक्रिय रुचि ले फिर भी यह माना जाता है कि विद्यार्थियों की राजनीति में रुचि अवश्य रहती है
हमारे सामाजिक परिवेश में राजनीति देश तथा समाज के लिए परम उपयोगी है किंतु कभी-कभी यह अपने विकृत रूप में समाज को हानि भी पहुंचाती है
शिक्षण संस्थाओं में राजनीति
वर्तमान युग राजनीतिप्रधान है परिवार से लेकर व्यापारिक संस्थानों में, यहाँ तक कि शिक्षण संस्थानों में भी इसका व्यापक रूप में प्रवेश है गंदी राजनीति के प्रवेश से शिक्षण संस्थाओं का वातावरण दूषित हो गया है
प्रबंधक वर्ग, छात्रों, अध्यापकों के अपने-अपने गुट हैं ये एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते रहते हैं. प्रबंधकों की राजनीति में अध्यापक पिसते हैं और अध्यापकों की राजनीति का दुष्परिणाम छात्रों को भुगतना पड़ता है
अध्यापकों की नियुक्ति एवं पदोन्नति के पीछे राजनैतिक सूत्रों का हाथ रहता है और छात्रों को आगे बढ़ाने में भी अनेक बार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इनकी सहायता ली जाती है. उच्चपदों पर बैठे हुए लोगों में शिक्षा से लेकर पाठ्यक्रम निर्धारण तक में राजनीति व्याप्त है
राजनैतिक दबावों ने परिश्रमी लोगों को पीछे ढकेल दिया है और उनके स्थान पर ऐसे लोग स्थापित कर दिए गए हैं जिनका शिक्षा से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है. राजनीति की यह विषबेल प्रारंभिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक व्याप्त है
इसका कुप्रभाव हमारे सामने स्पष्ट है. अध्यापक पढ़ाने में रुचि नहीं लेते और छात्र आगे बढ़ने के लिए मनोयोगपूर्वक अध्ययन की अपेक्षा अनुचित साधन अपनाते हैं
सत्ता के संघर्ष के कारण परिस्थितियाँ विषमतर होती जा रही हैं ‘कुलपति हटाओ’, ‘प्राचार्य हटाओ’ आदि नारे छात्रों की ओर से लगाए जाते हैं
ये अधिकतर अन्य लोगों से प्रेरित होते हैं जो छात्रों को इनके लिए उकसाते रहते हैं. जहाँ छात्र दो वर्गों में बँट जाते हैं वहाँ समस्या और भी उग्र हो जाती है
निश्चित ही देश की शिक्षण संस्थाएँ आज स्वार्थी और घृणित राजनीति के रोग से ग्रस्त हैं. भावी पीढ़ी को इस भयानक विकृति से मुक्ति दिलाने के लिए इसका निदान तथा उपचार नितांत आवश्यक है
विद्यार्थी और राजनीति
हमारे देश में प्राचीनकाल से ही विद्यार्थियों को राजनीतिशास्त्र के मूलभूत तत्त्वों का ज्ञान कराया जाता था. राजतंत्र के युग में राजनीति का ज्ञान राजपुरुषों तथा उनके सहयोगियों के लिए आवश्यक था
किंतु वर्तमान प्रजातांत्रिक युग में राजनीति का प्रचार-प्रसार जन-जन तक हो गया है अत: प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेना चाहिए या नहीं?
इस विषय में विचारकों के दो वर्ग हैं. एक वर्ग का कहना है कि विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेना चाहिए इनका मानना है कि विद्यार्थी समुदाय समाज का एक प्रभावशाली अंग है और आज जबकि राजनीति हमारे आचार-विचार, प्रतिदिन के जीवन में सर्वत्र व्याप्त हो गई है तथा जीवन का प्रत्येक क्षेत्र उससे प्रभावित है तो विद्यार्थी वर्ग उससे किस प्रकार अलग रह सकता है
विद्वानों के दूसरे वर्ग का कहना है कि राजनीति में प्रवेश के लिए परिपक्वता कार्यकुशलता तथा अनुभव की नितांत आवश्यकता है. विद्यार्थियों का मस्तिष्क इतना परिपक्व नहीं होता कि वे समस्या का गहराई से अध्ययन कर सकें और वस्तुस्थिति का उचित मूल्यांकन कर सके
उनमें आवेश का प्राबल्य तथा भावुकता का प्राधान्य होता है ऐसी स्थिति में उनका राजनीति में प्रवेश स्वयं उनके लिए तथा समाज के लिए अहितकर होगा
वर्तमान परिस्थिति
स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् हमारे नेताओं के दृष्टिकोण में पर्याप्त अंतर आ गया है. सत्ता की दौड़ और पदलोलुपता में वे इतने निमग्न हो गए हैं कि छात्र वर्ग की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया छात्रों को समुचित रचनात्मक निर्देश प्राप्त नहीं हो सके इसके दुष्परिणाम हमारे सामने हैं
देश के लिए विभिन्न राजनैतिक दलों ने छात्रों को आकृष्ट करने के लिए अपनी युवा शाखाएँ स्थापित कर रखी हैं इनके माध्यम से वे छात्रों से उचित-अनुचित लाभ उठा रहे हैं
कांग्रेस, युवक समाजवादी युवजन सभा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, स्टूडेंट फैडरेशन ऑफ इंडिया आदि ऐसे ही संगठन हैं जो देश के विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा संचालित हैं
देश के लिए यह अत्यंत चिंता का विषय है कि अपरिपक्व बुद्धिवाले छात्र पेशेवर राजनीतिज्ञों के हाथ की कठपुतली बन गए हैं. इनके संकेत पर वे व्यापक तोड़-फोड़, राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति पहुँचाने तथा शांति-व्यवस्था को भंग करने से भी नहीं चूकते इससे राष्ट्र को तो हानि होती ही है. उनकी शक्ति, श्रम व धन का भी अपव्यय होता है
उपसंहार
अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शिक्षा और राजनीति में परस्पर विरोध नहीं है. एक जागरूक नागरिक राजनीति से दूर नहीं रह सकता राजनैतिक क्रांतियों में छात्रों एवं शिक्षकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है
अत: आवश्यकता पड़ने पर उचित मार्गदर्शन में विद्यार्थी राजनीति में भाग ले सकते हैं किंतु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनका प्राथमिक उद्देश्य विद्या अध्ययन ही है
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संक्षेप में
मुझे उम्मीद है आपको विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध – Essay on student and politics in Hindi अच्छे से समझ आया होगा दोस्तों अगर आपको यह निबंध पसंद आया है तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर कीजिएगा
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