नमस्कार दोस्तों MDS BLOG में आपका स्वागत है क्या आप राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध (Essay on Hindi language) खोज रहे हैं तो आपने एक सही पोस्ट का चुनाव किया है. आज की इस पोस्ट में हम आपको हिन्दी भाषा पर निबंध कैसे लिखा जाए और राष्ट्रभाषा क्या है इसके बारे में बताएंगे आइए राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध जानते हैं
राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध – Essay on Hindi language
प्रस्तावना
जब भी मैं अपने आसपास पशु-पक्षियों को अपनी भाषाओं में कुछ कहते सुनता हूं या फिर बातचीत करते सुनता हूं तो अचानक मेरे मन में ख्याल आता है कि यह सब अपनी भाषाओं में कुछ न कुछ कह रहे हैं किंतु मैं इनकी भावनाओं को पूरी तरह से नहीं समझ पाता हूं.
तभी मैं सोचता हूं कि मानव कितना महान है उसे अपनी बात करने के लिए भाषा का वरदान मिला है. प्रति मनुष्य अपने भावों की अभिव्यक्ति किसी न किसी भाषा के माध्यम से करता है. भाषा के अभाव में ना तो किसी सामाजिक परिवेश की कल्पना की जा सकती है और ना ही सामाजिक और राष्ट्रीय प्रगति की कल्पना जा सकती है.
साहित्य, विज्ञान, कला, दर्शन आदि सभी का आधार भाषा है. किसी भी देश के निवासियों में राष्ट्रीय एकता की भावना के लिए विकास और पारस्परिक संपर्क के लिए एक ऐसी भाषा आवश्यक होनी चाहिए जिसका व्यापार राष्ट्रीय स्तर पर किया जा सके.
राष्ट्रभाषा क्या है
किसी भी देश में सबसे अधिक बोली एवं समझे जाने वाली भाषा ही वहां की राष्ट्रभाषा होती है. प्रत्येक राष्ट्र का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है उसमें अनेक जातियों, धर्मों और भाषाओं के लोग रहते हैं.
राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है जिसका प्रयोग राष्ट्र के सभी नागरिक कर सके तथा राष्ट्र के सभी सरकारी कार्य उसी के माध्यम से किया जा सके ऐसी व्यापक भाषा राष्ट्रभाषा कहलाती है. दूसरे शब्दों में समझाऊं तो राष्ट्रभाषा से तात्पर्य यह है कि- किसी राष्ट्र की जनता की भाषा राष्ट्रभाषा कहलाती है.
राष्ट्रभाषा की आवश्यकता
मनुष्य के मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए भी राष्ट्रभाषा आवश्यक है. मनुष्य चाहे जितनी भी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर ले परंतु अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उसे अपनी राष्ट्रभाषा की शरण लेनी ही पड़ती है. इससे उसे मानसिक संतोष का अनुभव होता है इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए भी राष्ट्रभाषा आवश्यक होती है.
भारत में राष्ट्रभाषा की समस्या
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के सामने अनेक प्रकार की समस्याएं विकराल रूप लिए हुई थी. उन समस्याओं में से राष्ट्रभाषा की भी समस्या थी कानून द्वारा भी इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सका था.
इसका मुख्य कारण यह था कि भारत एक विशाल देश है और इसमें अनेक भाषाओं को बोलने वाले व्यक्ति निवास करते हैं अतः किसी न किसी स्थान से कोई ना कोई विरोध राष्ट्रभाषा के राष्ट्र स्तरीय प्रसार में बाधा उत्पन्न कर रहा है इसलिए भारत में राष्ट्रभाषा की समस्या सबसे जटिल समस्याओं में से एक बन चुकी है.
राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी भाषा को मान्यता
संविधान का निर्माण करते समय यह प्रश्न उठा था कि किस भाषा को राष्ट्रभाषा बनाए जाए? प्राचीन काल में राष्ट्रभाषा संस्कृत थी. धीरे-धीरे अन्य प्रांतीय भाषाओं की उन्नति हुई और संस्कृत ने अपनी पूर्व स्थिति को खो दिया. मुगल काल में उर्दू का विकास हुआ. अंग्रेजों के शासन में अंग्रेजी ही संपूर्ण देश की भाषा बनी.
अंग्रेजी हमारे जीवन में इतनी बस गई है कि अंग्रेजों का शासन समाप्त हो जाने पर देश से अंग्रेजी का अस्तित्व समाप्त नहीं किया जा सका है. इसी के प्रभाव स्वरूप भारतीय संविधान द्वारा हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर देने पर भी उसका समुचित उपयोग नहीं किया जा रहा है.
यद्यपि हिंदी एवं अहिंदी भाषा के अनेक विद्वानों ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का समर्थन किया है तथापि आज भी हिंदी को उसका गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हो सका है.
राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के विकास में उत्पन्न बाधाएं
स्वतंत्र भारत के संविधान में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है परंतु आज भी देश के अनेक प्रांतों ने इसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकारा नहीं है. हिंदी संसार की सबसे अधिक सरल, मधुर एवं वैज्ञानिक भाषा है फिर भी हिंदी का विरोध जारी है.
हिंदी की प्रगति और उसके विकास की भावना का स्वतंत्र भारत में अभाव है. राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की प्रगति के लिए केवल सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नहीं होंगे इसके लिए जन सामान्य का सहयोग भी आवश्यक है.
हमें अपनी मातृभाषा का सम्मान करना चाहिए. विदेशी भाषाओं को उच्च स्थान न देकर अपनी मातृभाषा हिंदी को उच्च स्थान देना चाहिए.
हिन्दी के पक्ष एवं विपक्ष संबंधी विचारधारा
हिंदी भारत के विस्तृत क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है. दोस्तों देश में लगभग 1 अरब से अधिक व्यक्ति हिंदी बोलते हैं यह सरल तथा सुबोध है और इसकी लिपि भी सरल है थोड़े अभ्यास से ही समझ में आ जाती है. फिर भी एक वर्ग ऐसा है जो हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करता.
इसमें अधिकांशत वे व्यक्ति है जो अंग्रेजी के प्रति अंधभक्त है कहा जाए कि अंग्रेजी के प्रति समर्थक है. उनका कहना है कि हिंदी केवल उत्तर भारत तक ही सीमित है. उनके अनुसार यदि हिंदी को राष्ट्रभाषा बना दिया गया है तो अन्य प्रांतीय भाषाएं महत्वहीन हो जाएंगी.
इस वर्ग की धारा है कि भारत का ज्ञान उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्रदान नहीं कर सकता. इस दृष्टि से इनका कथन है कि अंग्रेजी ही विश्व की संपर्क भाषा है और यही हमारी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए.
जहां तक मेरा मानना है यह एक गलत विचारधारा है. हमें अपने देश का सम्मान करना चाहिए इसीलिए राष्ट्रभाषा का प्रोत्साहन हमें करना चाहिए.
हिन्दी के विकास संबंधी प्रयत्न
राष्ट्रभाषा हिंदी के विकास में जो बाधाएं आई है उन्हें दूर किया जाना चाहिए. देवनागरी लिपि वैज्ञानिक लिपि है किंतु उसमें वर्णमाला, मात्रा आदि के कारण लेखन में गति नहीं आ पाती.
हिंदी व्याकरण के नियम हिंदी आभाषियों को कठिन लगते हैं इनको भी सरल बनाया जाना चाहिए जिससे वह भी हिंदी सीखने में रुचि ले सके.
केंद्र सरकार ने हिंदी निदेशालय की स्थापना करके हिंदी के विकास कार्य को गति प्रदान की है. इसके अतिरिक्त हिंदी साहित्य सम्मेलन, नागरी प्रचारिणी सभा संस्थाओं ने भी हिंदी के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
हिन्दी के प्रति हमारा कर्तव्य
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है. इसकी उन्नति ही हमारी उन्नति है. मेरा मानना है कि हमारा कर्तव्य है कि हम हिंदी के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाएं. हिंदी के अंतर्गत विभिन्न प्रांतीय भाषाओं की सरल शब्दावली को अपनाया जाना चाहिए. हिंदी भाषा का प्रचार नारो से नहीं होता वह निरंतर परिश्रम और धैर्य से होता है और हिंदी व्याकरण का प्रमाणीकरण किया जाना चाहिए.
उपसंहार
राष्ट्रभाषा हिंदी का भविष्य उज्जवल है. यदि हिंदी विरोधी अपनी स्वार्थ की भावना को त्याग सकें और हिंदी भाषी धैर्य, संतोष और प्रेम से काम ले तो हिंदी भाषा भारत की समस्या न बनकर राष्ट्रीय जीवन का आदर्श बन जाएगी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने भी हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता के लिए संदर्भ में कहा था –
“मैं हमेशा यह मानता हूं कि हम किसी भी हालात में प्रांतीय भाषाओं को नुकसान पहुंचाना या मिटाना नहीं चाहते हमारा मतलब तो सिर्फ यह है कि विभिन्न प्रांतों के पारस्परिक संबंधों के लिए हम हिंदी भाषा सीखे ऐसा कहने से हिंदी के प्रति हमारा कोई पक्षपात प्रकट नहीं होता हिंदी को हम राष्ट्रभाषा मानते हैं वह राष्ट्रीय होने के लायक है. वही भाषा राष्ट्रीय भाषा बन सकती है जिसे अधिकांश संख्या में लोग जानते और बोलते हैं और जो सीखने में सुगम हो”
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संक्षेप में आज आपने जाना – राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध
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