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खेल कूद का महत्व पर निबंध

क्या आप खेल कूद का महत्व (khel kud ka mahatva) जानना चाहते हैं तो यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी. इस पोस्ट में मैंने आपको हमारे जीवन में खेल कूद का महत्व क्या है और इस पर निबंध कैसे लिखें इसके बारे में बताया है

इस एक निबंध से आप खेलकूद का सही मायने में मतलब समझ सकते हैं और खेलकूद क्यों जरूरी है इसके बारे में भी समझ सकते हैं. तो आइए जीवन में खेल कूद का महत्व पर निबंध की शुरुआत करते हैं

खेल कूद का महत्व – Importance of Sports Essay in Hindi

khel kud ka mahatva

प्रस्तावना

खेल मनुष्य की जन्म जात प्रवृत्ति है. यह प्रवृत्ति बालकों, युवकों और वृद्धों तक में पाई जाती है जो बालक अपनी बाल्यावस्था में खेलों में भाग नहीं लेता वह बहुत-सी बातें सीखने से वंचित रह जाता है और उसके व्यक्तित्व का भली प्रकार विकास नहीं हो पाता

हमारे पूर्वजों ने मानव-जीवन को 100 वर्ष का माना था इसमें प्रथम 25 वर्ष विद्याध्ययन एवं शारीरिक पुष्टि के लिए निर्धारित किए गए थे विद्यार्थी अपने अध्ययनकाल में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शरीर को पुष्ट बनाते एवं विद्याध्ययन करते थे. इस बात की पुष्टि निम्नलिखित श्लोक से होती है

“प्रासादस्य विनिर्माणे मूलभित्तिरपेक्षते
तथैव जीवनस्यादौ ब्रह्मचर्यमपेक्षते”

अर्थात जिस प्रकार किसी भवन का निर्माण करने के लिए सुदृढ़ नींव की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जीवन के आरंभ में ब्रह्मचर्य एवं शरीर पुष्टि की आवश्यकता होती है

खेल कूद से जीवन में स्वास्थ्य का महत्त्व

स्वास्थ्य जीवन की आधारशिला है. स्वस्थ मनुष्य ही अपने जीवन सम्बन्धी कार्यों को भली-भाँति पूर्ण कर सकता है. हमारे देश में धर्म का साधन शरीर को ही माना गया है अत: कहा गया है-‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’

इसी प्रकार अनेक लोकोक्तियां स्वास्थ्य के सम्बन्ध में प्रचलित हो गई हैं जैसे- पहला सुख नीरोगी काया, एक तंदुरुस्ती हजार नियामत, जान है तो जहान है आदि

इन सभी लोकोक्तियों का अभिप्राय यही है कि मानव को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. भारतेंदुजी ने कहा था –

“दूध पियो कसरत करो, नित्य जपो हरि नाम
हिम्मत से कारज करो, पूरेंगे सब राम”

शिक्षा और खेल कूद का महत्व

यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि शिक्षा और क्रीडा का अनिवार्य सम्बन्ध है. शिक्षा यदि मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है तो उस विकास का पहला अंग है शारीरिक विकास

शारीरिक विकास व्यायाम और खेल-कूद के द्वारा ही संभव है इसलिए खेल-कूद या क्रीडा को अनिवार्य बनाए बिना शिक्षा की प्रक्रिया का संपन्न हो पाना संभव नहीं है

अन्य मानसिक, नैतिक या आध्यात्मिक विकास भी परोक्ष रूप से क्रीडा और व्यायाम के साथ ही जुड़े हैं. यही कारण है कि प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकीय शिक्षा के साथ-साथ खेल-कूद और व्यायाम की शिक्षा भी अनिवार्य रूप से दी जाती है

विद्यालयों में व्यायाम शिक्षक, स्काउट मास्टर, एन०डी०एस०आई० आदि शिक्षकों की नियुक्ति इसीलिए की जाती है कि प्रत्येक बालक उनके निरीक्षण में अपनी रुचि के अनुसार खेल-कूद में भाग ले सके और अपने स्वास्थ्य को सबल एवं पुष्ट बना सके

खेल-कूद एवं व्यायाम के विभिन्न प्रकार

शरीर को शक्तिशाली, स्फूर्तियुक्त और ओजस्वी मन को प्रसन्न बनाने के लिए जो कार्य किए जाते हैं उन्हें हम खेल-कूद, क्रीडा या व्यायाम कहते हैं. खेलकूद और व्यायाम से शरीर में तीव्रगति से रक्त-संचार होता है अतः दौड़, क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन, टेनिस, हॉकी आदि खेल इसी दृष्टि से खेले जाते हैं

इन खेलों के लिए विशेष रूप से लंबे-चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है अतः ये खेल सब लोग सभी स्थानों पर सुविधापूर्वक नहीं खेल सकते हैं वे अपने शरीर को पुष्ट करने के लिए कुछ नियमित व्यायाम करते हैं

जैसे- प्रातः तथा सार्थ खुली वायु में प्रमण, दंड-बैठक लगाना, मुगदर घुमाना, अखाड़े में कुश्ती के जोर करना एवं आसन करना आदि इस प्रकार खेल-कूद और व्यायाम का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है और इनके विभिन्न रूप हैं

शिक्षा में खेल कूद का महत्व

संकुचित अर्थ में शिक्षा का तात्पर्य पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करना और मानसिक विकास करना ही समझा जाता है लेकिन व्यापक अर्थ में शिक्षा से तात्पर्य केवल मानसिक विकास से ही नहीं है वरन् शारीरिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास अर्थात् सर्वांगीण विकास से है

सर्वांगीण विकास के लिए शारीरिक विकास आवश्यक है और शारीरिक विकास के लिए खेल-कूद और व्यायाम का विशेष महत्त्व है शिक्षा के अन्य क्षेत्रों में भी खेल-कूद की परम उपयोगिता है जिसे निम्नलिखित रूपों में जाना जा सकता है –

  • शारीरिक विकास में खेल-कूद का महत्त्व
  • मानसिक विकास में खेल-कूद का महत्त्व
  • नैतिक विकास में खेल-कूद का महत्त्व
  • आध्यात्मिक विकास में खेल-कूद का महत्त्व
  • शिक्षा प्राप्ति में रुचि

शारीरिक विकास

शारीरिक विकास में शिक्षा का मुख्य एवं प्रथम सोपान है जो खेल-कूद और व्यायाम के बिना कदापि संभव नहीं है. प्राय: बालक की पूर्ण शैशवावस्था भी खेल-कूद में ही व्यतीत होती है

खेल-कूद से शरीर के विभिन्न अंगों में एक संतुलन स्थापित होता है शरीर में ऊर्जा उत्पन्न होती है, रक्त-संचार ठीक प्रकार से होता है और प्रत्येक अंग पृष्ट होता है. स्वस्थ बालक पुस्तकीय ज्ञान को ग्रहण करने की अधिक क्षमता रखता है. अतः पुस्तकीय शिक्षा को सुगम बनाने के लिए भी खेल-कूद और व्यायाम की नितांत आवश्यकता है

मानसिक विकास

मानसिक विकास की दृष्टि से भी खेल-कूद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं. स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मन का आधार होता है. इस सम्बन्ध में एक कहावत भी प्रचलित है कि तन स्वस्थ तो मन स्वस्थ अर्थात् स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है

शरीर से दुर्बल व्यक्ति विभिन्न रोगों तथा चिंताओं से ग्रस्त हो मानसिक रूप से कमजोर तथा चिड़चिड़ा बन जाता है. वह जो कुछ पढ़ता-लिखता है उसे शीघ्र ही भूल जाता है. अत: वह शिक्षा भी भली प्रकार ग्रहण नहीं कर पाता खेल-कूद से शारीरिक शक्ति में तो वृद्धि होती ही है मन में प्रफुल्लता, सरिता और उत्साह भी बना रहता है

नैतिक विकास

बालक के नैतिक विकास में भी खेल-कूद का बहुत बड़ा योगदान है. खेल-कूद से शारीरिक एवं मानसिक सहन-शक्ति, धैर्य, साहस, सामूहिक भ्रातृभाव एवं सद्भावना का विकास होता है

बालक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को खेल-भावना से ग्रहण करने के अभ्यस्त हो जाते हैं तथा शिक्षा-प्राप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को हँसते-हँसते पार कर सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाते हैं

आध्यात्मिक विकास

खेल-कूद आध्यात्मिक विकास में भी परोक्ष रूप से सहयोग प्रदान करते हैं. आध्यात्मिक जीवन-निर्वाह के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है वे सब खिलाड़ी में विद्यमान रहते हैं

योगी व्यक्ति सुख-दुःख, हानि-लाभ अथवा जय-पराजय को समान भाव से ही अनुभूत करता है. खेल के मैदान में ही खिलाड़ी इस समभाव को विकसित करने की दिशा में कुछ-न-कुछ सफलता अवश्य प्राप्त कर लेते हैं. वे खेल को अपना कर्त्तव्य मानकर खेलते है इस प्रकार आध्यात्मिक विकास में भी खेल का महत्त्वपूर्ण स्थान है

शिक्षा प्राप्ति में रुचि

शिक्षा में खेल-कूद का अन्य रूप में भी महत्त्वपूर्ण स्थान है. आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों ने कार्य और खेल में समन्वय स्थापित किया है बालकों को शिक्षित करने का कार्य यदि खेल-पद्धति के आधार पर किया जाता है तो बालक उसमें अधिक रुचि लेते हैं और ध्यान लगाते हैं

अत: खेल के द्वारा दी गई शिक्षा सरल, रोचक और प्रभावपूर्ण होती है. इसी मान्यता के आधार पर ही किंडरगार्टन, मांटेसरी प्रोजेक्ट आदि आधुनिक शिक्षण पद्धतियाँ विकसित हुई हैं. इसे खेल पद्धति द्वारा शिक्षा’ कहा जाता है. स्पष्ट है कि व्यायाम और खेल-कूद के बिना शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करना असंभव है

व्यायाम और शिक्षा का समन्वय

उपर्युक्त आधार पर यह स्पष्ट है कि शिक्षा में व्यायाम और खेल-कूद का महत्त्वपूर्ण स्थान है. इसका अर्थ यह नहीं है कि खेल-कूद के समक्ष शिक्षा के अन्य अंगों की उपेक्षा कर दी जाए

आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा और खेल-कूद में समन्वय स्थापित किया जाए. विद्यार्थी गण खेल-कूद और व्यायाम से शक्ति का संचय करें, ऊर्जा एवं ताजगी प्राप्त करें और इन सब का सदुपयोग शिक्षा प्राप्त करने में करें. किसी भी एक कार्य को निरंतर करते रहना ठीक नहीं है

जीवन में प्रसन्नता प्राप्त करने का एकमात्र यही तरीका है अतः हमें पढ़ाई के समय खेल-कूद से दूर रहना चाहिए और खेल के समय प्रत्येक दृष्टि से चितारहित होकर केवल खेलना ही चाहिए

उपसंहार

व्यायाम और खेल-कूद से शरीर में शक्ति का संचार होता है जीवन में ताजगी और ऊर्जा मिलती है. आधुनिक शिक्षा जगत में खेल के महत्त्व को स्वीकार कर लिया गया है. छोटे-छोटे बच्चों के स्कूलों में भी खेल-कूद की समुचित व्यवस्था की गई है हमारी सरकार ने इस कार्य के लिए अलग से खेल मंत्रालय भी बनाया है

फिर भी जैसी खेल-कूद और व्यायाम की व्यवस्था माध्यमिक विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में होनी चाहिए वैसी अभी नहीं है. इस स्थिति में परिवर्तन आवश्यक है यदि भविष्य में सुयोग्य नागरिक एवं सर्वांगीण विकासयुक्त शिक्षित व्यक्तियों का निर्माण करना है तो शिक्षा में खेल-कूद की उपेक्षा न करके उसे व्यावहारिक रूप प्रदान करना होगा

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संक्षेप में 

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