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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय (Mahadevi Verma ka Jivan Parichay) :- हिन्दी साहित्य में महादेवी वर्मा का स्थान अविस्मरणीय है. उनकी वेदना भरी कविताओं के कारण उन्हें ‘आधुनिक युग की मीरा’ कहा जाता है

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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – Mahadevi Verma ka Jivan Parichay

Mahadevi Verma ka Jivan Parichay

जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 ई० को उत्तर प्रदेश राज्य के फर्रुखाबाद नामक जनपद में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री गोविन्दप्रसाद वर्मा तथा माता का नाम हेमरानी देवी था. इनकी माता परम विदुषी धार्मिक महिला थी

महादेवी वर्मा जी की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई. संस्कृत से एम० ए० उत्तीर्ण करने के बाद ये ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ में प्रधानाचार्या बन गई. इनका विवाह 9 वर्ष की अल्पायु में हो गया था. इनके पति का नाम डा० रूपनाराण वर्मा था लेकिन इनका विवाहित जीवन सफल नहीं रहा था

महादेवी जी ने घर पर ही चित्तकला तथा संगीत की शिक्षा प्राप्त की. महादेवी जी सन् 1929 ई० में बौद्ध धर्म में दीक्षा लेकर बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं, किन्तु गांधी जी के सम्पर्क में आने के बाद उनकी प्रेरणा से वे समाज-सेवा के कार्य में लग गईं. इन्होंने नारी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और नारी के अधिकारों की रक्षा के लिए नारियों का शिक्षित होना भी आवश्यक बताया. कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद की मनोनीत सदस्य भी रहीं

शिक्षा तथा साहित्य के क्षेत्र में उनकी सेवाएँ अभूतपूर्व थीं. सन् 1956 ई० में उन्होंने ‘साहित्य अकादमी’ की स्थापना के प्रयास में अकथनीय योगदान दिया. भारत के राष्ट्रपति से इन्होंने पद्मभूषण की उपाधि प्राप्त की और 1983 ई० में इन्हें यामा पर ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 11 सितम्बर 1987 ई० को इस महान कवयित्री का स्वर्गवास हो गया

रचनाएँ

महादेवी जी की प्रमुख काव्य रचनाएँ इस प्रकार हैं :-

(1) काव्य कृतियाँ – नीरजा, रश्मि, नीहार, सान्ध्यगीत, दीपशिखा, यामा
(2) गद्य रचनाएँ – अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियाँ

साहित्यिक विशेषताएँ

महादेवी जी के काव्य और गद्यपरक साहित्य में मानवतावादी धारा का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है. वे करुणा और भावना की देवी हैं. उनके साहित्य में जहाँ दीन-हीन मानवता का भावनामय अंकन है, वहीं निरीह पशु-पक्षियों का भी हृदयस्पर्शी एवं रोचक चित्रण है

पशु पक्षियों तथा मानवीय संबंधों को बहुत ही बारीकी से एवं अतुलनीय रूप से प्रदर्शित किया गया है. रेखाचित्रों में उनका गद्य कौशल देखते ही बनता है. उनके ‘नीलकण्ठ मोर’, ‘गौरा गाय’, ‘सोना हिरनी’ आदि रेखाचित्र अपने में अनोखे हैं

महादेवी वर्मा जी की प्रस्तुति में पशु-पक्षी भी अपने सजीव व्यक्तित्व से पाठकों को मोहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. महादेवी जी की कोमल लेखनी का संस्पर्श प्राप्त करके ये प्राणी भी मनुष्यों की तरह बोलने लगते हैं, रोते हैं और हँसते हैं

उनका गद्य वैचारिक गम्भीरता से युक्त है, फिर भी उसमें काव्य-सा लालित्य हैं. यह विशेषता महादेवी जी को अपने समकालीन साहित्यकारों में एक विशेष स्थान दिलाती है

भाषा शैली

महादेवी जी की गद्य भाषा अपने आप में अनूठी है. यह कहना सही है कि हजारों लेखों में महादेवी जी का गद्य अलग से पहचाना जा सकता है. उनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठता विशेष रूप से झलकती है. कोई भी पाठक उनकी शैली में मधुरता, अनुभूति की तरलता, मार्मिकता और सुन्दरता के एक-साथ दर्शन करता है. भावमयता के स्तर पर महादेवी जी के गद्य की भाषा-शैली का कोई जोड़ नहीं है

FAQ’s – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

महादेवी वर्मा का जन्म कब और कहाँ हुआ ?

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश \के फर्रुखाबाद नामक जिले में हुआ था

महादेवी वर्मा क्यों प्रसिद्ध है ?

महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में अपनी कविता, निबंध और रेखाचित्र कथा के कारण प्रसिद्ध है. महादेवी वर्मा जी की वेदना भरी कविताओं के कारण उन्हें 'आधुनिक युग की मीरा' भी कहा जाता है

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संक्षेप में

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