Paropkar Par Nibandh : दोस्त क्या आप परोपकार पर निबंध – Paropkar Essay In Hindi जानना चाहते हैं तो यह पोस्ट आपके लिए एकदम सही है
नमस्कार MDS BLOG में आपका हार्दिक स्वागत है. आज मैं आपको परोपकार पर निबंध कैसे लिखा जाए इसके बारे में जानकारी दूंगा. यह निबंध विद्यार्थी वर्ग के लिए काफी उपयोगी है. तो आइए परोपकार का महत्व जानते है
परोपकार पर निबंध – Paropkar Par Nibandh

“परोपकार जो करे हो उसका उद्धार,
जीवन सफल हो जाए शांति मिले अपार”
प्रस्तावना
परोपकार करना मनुष्य मात्र का परम धर्म है. प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में परोपकारी होना चाहिए
परोपकार की भावना मनुष्य के भीतर स्वत: ही आती है. मानवता के कल्याण हेतु सभी का परोपकारी होना अति आवश्यक है
परोपकार से आशय
परोपकार दो शब्दों “पर तथा उपकार” से मिलकर बना है इसका अर्थ है – दूसरों पर किया जाने वाला उपकार
जिस उपकार में कोई भी निज स्वार्थ न हो, परोपकार कहलाता है. जिस व्यक्ति के हृदय में करुणा और सेवा का भाव होता है वह व्यक्ति परोपकारी कहलाता है
परोपकार के रूप
हम परोपकार किसी भी रूप में कर सकते हैं. निस्वार्थ भाव से किसी जरूरतमंद की मदद करना परोपकार कहलाता है
गर्मी के मौसम में राहगीरों को निशुल्क ठंडा पानी पिलाना, रोगियों का निशुल्क इलाज कराना, गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करना, गरीब परिवार की कन्या का विवाह कराना आदि सब परोपकार कहलाता है
किसी असहाय का मनोबल बढ़ाना भी परोपकार की श्रेणी में आता है. ऐसे बहुत से कार्य जिनको हम परहित हेतु करते हैं और बदले में किसी भी प्रकार की कोई इच्छा नहीं रखते हैं उन सभी को परोपकार के कार्य कह सकते हैं
महर्षि दधीचि ने देवताओं की रक्षा और मानवता के कल्याण हेतु अपनी हड्डियों तक का दान दे दिया था. इतिहास ऐसे कईं उदाहरणों से भरा पड़ा है
प्रकृति का परोपकारी रूप
हमारी प्रकृति सबसे अधिक परोपकारी है. सूर्य अपने प्रकाश से धरती के अंधकार को दूर करता है. चाँद अपनी शीतलता से सभी के मन को शांति देता है
बादल परोपकार हेतु बरसकर अपना अस्तित्व नष्ट कर लेते हैं. नदी, तालाब अपने जल से दूसरों को जीवन देते हैं. पेड़ कभी अपना फल स्वयं नहीं खाता, फूल अपनी सुगंध दूसरों को बाँट देते हैं
परोपकार सबसे बड़ा धर्म
परोपकार को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है. आज लगभग सभी मनुष्य पुण्य कर्मों को भूलते चले जा रहे हैं
आज मनुष्य को परोपकार, करुणा, उपकार जैसे शब्दों का पता ही नहीं है. आज हम चाहे कितना भी धन कमा लें परन्तु यदि हमारे हृदय में परोपकार की भावना नहीं है तो सब व्यर्थ है
मनुष्य इस दुनिया में खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही चला जायेगा. केवल और केवल मनुष्य के अच्छे कर्म ही हैं जो उसके साथ जाएंगे. अतः परोपकार की भावना सर्वोपरि है
उपसंहार
आधुनिकता के युग में मनुष्य अत्यधिक लोभी और स्वार्थी हो गया है. आज भलाई करना मात्र किताबों तक ही सीमित रह गया है
बिन परोपकार के मानव जीवन को व्यतीत तो कर सकता है परन्तु मानव का जीवन तभी सार्थक हो सकता है जब वह परोपकार करे
इसके लिए छोटे स्तर पर शुरुआत की जा सकती है. परोपकार करने से आत्मिक तथा मानसिक शांति भी मिलती है और दूसरों की मदद भी हो जाती है. अतः मनुष्य को अवश्य ही परोपकारी होना चाहिए
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संक्षेप में
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