क्या आप रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध (Rani lakshmi bai Essay in Hindi) लिखना चाहते हैं तो आप एकदम सही जगह पर आ चुके हैं. आज मैंने आपको झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर निबंधों का कलेक्शन दिया है. तो आइए बिना समय गवाएं पढ़ते हैं
1) रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध 200 शब्दों में
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी में हुआ. उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था. प्यार से सब उन्हें मनु कहते थे. उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ तब से वे झाँसी की रानी बनी. शादी के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया
लक्ष्मीबाई बचपन से ही शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्रों मे भी कुशल थी. राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद जब उन्हें झाँसी का किला छोडना पडा तब भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. पति के निधन के बाद उन्होंने झाँसी की रक्षा करने का निश्चय किया
झाँसी को बचाने के लिए उन्होंने अपनी सेना बनाना शुरू कर दिया. अपनी सेना मे उन्होंने ज्यादातर महिलाओ को भर्ती किया और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया
जब झाँसी पर आक्रमण हुआ तो रानी लक्ष्मीबाई सफलतापूर्वक उस आक्रमण का जवाब दिया. 18 जून 1858 को ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई. इतिहास मे आज भी रानी लक्ष्मीबाई का नाम उनकी दृढता, चालाकी, साहस, सुंदरता के लिए लिया जाता है
2) रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध 500 शब्दों में

“चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी”
प्रस्तावना
रानी लक्ष्मी बाई सन 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम की एक महिला स्वतंत्रता सेनानी थी. वह झांसी की महारानी थी जोकि अपना राज्य बचाने हेतु अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गई थी. वह बहादुर और वीरता की मिसाल हैं
जन्म तथा बचपन
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर सन 1828 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था. वह मराठा ब्राह्मण परिवार से थीं. रानी के पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था
रानी के बचपन का नाम मणिकर्णिका था. प्रेम से सब उन्हें मनु कह कर बुलाते थे. बचपन से ही उन्होंने अपनी योग्यता और साहस का अद्वितीय परिचय देना शुरू कर दिया था
रानी का विवाह
लक्ष्मी बाई का विवाह सन 1850 में झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ. सन 1851 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई किंतु चार माह पश्चात ही उसे बालक का निधन हो गया. इसके दो वर्ष बाद राजा भी चल बसे. किंतु रानी ने साहस नहीं खोया और हिम्मत दिखाते हुए झांसी की सत्ता संभाली
राजा की मृत्यु के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी ने राज्य हड़प नीति के तहत झांसी पर कब्जा करना चाहा, किंतु रानी ने अपने गोद लिए हुए पुत्र दामोदर राव का हवाला देते हुए अपनी झांसी देने से साफ-साफ इंकार कर दिया था
रानी का व्यक्तित्व
रानी लक्ष्मी वीर और साहसी व्यक्तित्व की मालकिन थी. भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कि वे एक महान नायिका थी. झांसी का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने अपनी प्रजा के साथ बड़ी ही बहादुरी से ब्रिटिश साम्राज्य का सामना किया
झांसी के राजा और अपने पति की मृत्यु के पश्चात रानी ने झांसी की सत्ता संभाली और एक सशक्त शासिका के रूप में अपनी भूमिका निभाई
अंग्रेजों के साथ संघर्ष
23 मार्च सन 1858 को झांसी का ऐतिहासिक युद्ध प्रारंभ हुआ था. रानी के नेतृत्व में युद्ध की जोरदार शुरुआत हुई और अंग्रेजी सेना यह देखकर पूरी तरह से घबरा गई थी
7 दिन तक युद्ध चलता रहा, रानी ने वीरता पूर्वक झांसी की रक्षा की और अपनी छोटी सी सेना के साथ अंग्रेजों का बड़ी ही बहादुरी से मुकाबला किया. उसी समय अंग्रेज रानी की वीरता और साहस का लोहा तो मान गए थे किंतु उन्होंने रानी का पीछा नहीं छोड़ा. युद्ध ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका और अंत में रानी वीरगति को प्राप्त हुई
उपसंहार
रानी लक्ष्मी बाई 17 जून 1858 को अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई. ग्वालियर के किले में उन्होंने अपने सामर्थ्य और अपने साहस का परिचय दिया और अपने देश की खातिर अपनी जान न्योछावर कर दी. रानी की वीरता और समर्पण सदा सदा के लिए स्मरणीय रहेगा
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