नमस्कार दोस्तों MDS BLOG में आपका स्वागत है क्या आप राष्ट्रीय एकता पर निबंध – Essay on National unity in Hindi खोज रहे हैं तो आपने एक सही पोस्ट का चुनाव किया है. आज की इस पोस्ट में हमने आपको अनेकता में एकता एवं राष्ट्रीय एकता पर निबंध कैसे लिखा जाए इसके बारे में बताया है तो आइए राष्ट्रीय एकता पर निबंध को जानते हैं
राष्ट्रीय एकता पर निबंध – Essay on National unity in Hindi
प्रस्तावना
भारत यूँ तो अनेक धर्मों, जातियों और भाषाओं का देश है परंतु इसकी सबसे बड़ी विशेषता राष्ट्रीय एकता की भावना है. जब कभी इस एकता को खंडित करने का प्रयास किया जाता है तो भारत का एक-एक नागरिक सजग हो उठता है तथा राष्ट्रीय एकता को खंडित करने वाली शक्तियों के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन प्रारंभ हो जाता है.
वस्तुतः राष्ट्रीय एकता हमारे राष्ट्रीय गौरव की प्रतीक है और जिस व्यक्ति को अपने राष्ट्रीय गौरव का अभिमान नहीं है वह मनुष्य नहीं वरन् पशु के समान है. एकता में अनेकता के लिए नारा पूरे विश्व में भारत का ही ज्ञान कराता है
राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय
राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय है संपूर्ण भारत की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और वैचारिक एकता हमारे कर्मकांड, पूजा-पाठ, खान-पान, रहन-सहन और वेशभूषा में अंतर हो सकता है किंतु हमारे राजनैतिक और वैचारिक दृष्टिकोण में प्रत्येक दृष्टि से एकता की भावना दृष्टिगोचर होती है.
इस प्रकार अनेकता में एकता ही भारत की प्रमुख विशेषता है. राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता राष्ट्र की आंतरिक शांति, सुव्यवस्था और बाहरी शत्रुओं से रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है. यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए तो हमारी पारस्परिक फूट का लाभ उठाकर अन्य देश हमारी स्वतंत्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे
राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधाएँ तथा कारण और निवारण
राष्ट्रीय एकता की भावना का अर्थ मात्र यही नहीं है कि हम एक राष्ट्र से संबद्ध हैं. राष्ट्रीय एकता के लिए एक-दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना का होना भी आवश्यक है
स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात् हमने सोचा कि अब पारस्परिक भेदभाव की खाई पट जाएगी कितु सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता, अज्ञानता और भाषागत अनेकता ने आज भी पूरे देश को आक्रांत कर रखा है
अत: राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न कर देने वाले कारकों को जानना आवश्यक है जिससे उनको दूर करने का प्रयास किया जा सके राष्ट्रीय एकता में बाधक कारण और उनके निवारण के उपाय इस प्रकार हैं –
सांप्रदायिकता
राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा सांप्रदायिकता की भावना है. सांप्रदायिकता एक ऐसी बुराई है जो मानव मानव में फूट डालती है, दो दोस्तों के बीच घृणा और भेद की दीवार खड़ी करती है, भाई को भाई से अलग करती है और अंत में समाज के टुकड़े कर देती है
दुर्भाग्य से इस रोग को समाप्त करने के लिए जितना अधिक प्रयास किया गया है यह रोग उतना ही अधिक बढ़ता गया है. स्वार्थ में लिप्त राजनीतिज्ञ संप्रदाय के नाम पर भोले-भाले लोगों की भावनाओं को भड़काकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहते हैं. परिणामत देश का वातावरण विषाक्त होता जा रहा है
यदि राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधे रखना है तो सांप्रदायिक विद्वेष, स्प्द्धा, ईष्ष्या आदि राष्ट्-विरोधी भावों को अपने मन से दूर रखना होगा और देश में सांप्रदायिक सद्भाव जाग्रत करना होगा.
सांप्रदायिक सद्भाव से तात्पर्य यह है कि हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, पारसी, जैन, बौद्ध आदि सभी मतावलंबी भारतभूमि को अपनी मातृभूमि के रूप में सम्मान देते हुए परस्पर स्नेह और सद्भाव के साथ रहें. यह राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है
सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रत्येक देशवासी को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि प्रेम से प्रेम, घृणा से घृणा और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है
हमें सोचना चाहिए कि हम अच्छे हिंदू, मुसलमान, सिक्ख या ईसाई अथवा किसी अन्य संप्रदाय के सदस्य होने के साथ-साथ अच्छे भारतवासी भी हैं. हमें यह जानना चाहिए कि सभी धर्म आत्मिक शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन अपनाते हैं
सभी धर्मों में छोटे-बड़े का भेद अनुचित ही माना गया है. सभी धर्म और उनके प्रवर्तक सत्य, अहिंसा, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते रहे हैं इसलिए सच्चे धर्म के मूल में भेद नहीं है
मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारा और चर्च सभी पूजा और प्रार्थना के पवित्र स्थान हैं. इन स्थानों पर मनुष्य को आत्मिक शांति मिलती है. हमें इन सभी स्थानों को पूज्यभाव से देखना चाहिए और इनकी पवित्रता की सभी प्रकार से रक्षा करनी चाहिए
सांप्रदायिक कटुता दूर करने के लिए आवश्यक है कि हम दूसरे धर्म या धर्मस्थानों को भीहो माना गया है. सभी धर्म और उनके प्रवर्तक सत्य, अहिंसा, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते रहे हैं
सांप्रदायिक कटुता दूर करने के लिए आवश्यक है कि हम दूसरे धर्म या धर्मस्थानों को भी उसी प्रकार मान्यता दें जिस प्रकार हम अपने धर्म या पूजास्थलों को देते हैं.
यदि हम अपने राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधना चाहते हैं तो इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी भारतीयों को अपना भाई समझे, चाहे वे किसी भी धर्म या मत को मानते हों “हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आपस में सब भाई-भाई” का नारा हमारी राष्ट्रीय अखंडता का मूल मंत्र होना चाहिए
उर्दू के प्रसिद्ध शायर इकबाल ने धार्मिक और सांप्रदायिक एकता की दृष्टि से अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था –
“मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्ताँ हमारा”
धार्मिक एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने धर्म-ग्रंथों के वास्तविक संदेश को समझें उनके स्वार्थपूर्ण अर्थ न निकालें विभिन्न धर्मों के आदर्श संदेशों को संगृहीत किया जाए
प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में उनके अध्ययन की विधिवत व्यवस्था की जाए जिससे भावी पीढ़ी उन्हें अपने आचरण में उतार सके और संसार के समक्ष ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर सके कि वह सभी धर्मों और संप्रदायों को महान मानती है एवं उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखती है
भाषागत विवाद
भारत बहुभाषी राष्ट्र है देश के विभिन्न प्रांतों की अलग-अलग बोलियाँ और भाषाएँ हैं. प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा और उस भाषा पर आधारित साहित्य को ही श्रेष्ठ मानता है
इससे भाषा पर आधारित विवाद खड़े हो जाते हैं तथा राष्ट्र की अखंडता भंग होने के खतरे बढ़ जाते हैं. यदि कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा के मोह के कारण किसी दूसरी भाषा का अपमान या उसकी अवहेलना करता है तो वह राष्ट्रीय एकता पर प्रहार करता है
होना तो यह चाहिए कि अपनी मातृभाषा को सीखने के बाद हम संविधान में स्वीकृत अन्य प्रादेशिक भाषाओं को भी सीखें और इस प्रकार राष्ट्रीय एकता की भावना के विकास में सहयोग प्रदान करें
प्रांतीयता या प्रादेशिकता की भावना
प्रांतीयता या प्रादेशिकता की भावना भी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है. राष्ट्र एक संपूर्ण इकाई है कभी-कभी यदि किसी अंचल विशेष के निवासी अपने पृथक् अस्तित्व की माँग करते हैं तो राष्ट्रीयता की परिभाषा को सही रूप में न समझने के कारण ही वे ऐसा करते हैं
इस प्रकार की माँग करने से राष्ट्रीय एकता और अखंडता का विचार ही समाप्त हो जाता है. भारत के सभी प्रांत राष्ट्रीयता के सूत्र में आबद्ध हैं अत: उनमें अलगाव संभव नहीं है. राष्ट्रीय एकता के इस प्रमुखत्त्व को दृष्टि से ओझल नहीं होने देना चाहिए
राष्ट्रीय एकता की दिशा में हमारे प्रयास
हमारे देश के विचारक, साहित्यकार, दार्शनिक एवं समाज सुधारक अपनी-अपनी सीमाओं में निरंतर इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि देश में भाईचारे और सद्भावना का वातावरण बने अलगाव की भावनाएँ, पारस्परिक तनाव और विद्वेष की दीवारें समाप्त हों
फिर भी इस आग में कभी पंजाब सुलग उठता है, कभी बिहार, कभी महाराष्ट्र, कभी गुजरात तो कभी उत्तर प्रदेश अप्रिय घटनाओं की पुनरावृत्ति हमें इस बात का संकेत देती है कि हम टकराव और बिखराव पैदा करने वाले तत्त्वों को रोक पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं
इन समस्याओं का समाधान केवल राष्ट्र नेताओं अथवा प्रशासनिक अधिकारियों के स्तर पर ही नहीं हो सकता वरन् इसके लिए हम सबको मिल जुलकर प्रयास करने होंगे
उपसंहार
संक्षेप में यह कहना उचित होगा कि राष्ट्रीय एकता की भावना एक श्रेष्ठ भावना है और इस भावना को उत्पन्न करने के लिए हमें स्वयं को सबसे पहले मनुष्य समझना होगा. मनुष्य एवं मनुष्य में असमानता की भावना ही संसार में समस्त विद्वेष एवं विवाद का कारण है
इसलिए जब तक हममें मानवीयता की भावना का विकास नहीं होता तब तक मात्र उपदेशों, भाषणों एवं राष्ट्र-गीत के माध्यम से ही राष्ट्रीय एकता का भाव उत्पन्न नहीं हो सकता और इस सुधार में हम सभी को भागीदार बनना है
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संक्षेप में
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