दोस्तों क्या आप सहशिक्षा पर निबंध – Essay on co-education in Hindi खोज रहे हैं तो यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी है. इस पोस्ट में मैंने आपको सहशिक्षा पर निबंध बताया है
हम सभी जानते हैं कि शिक्षा का हमारे जीवन में क्या महत्व है शिक्षा प्राप्त करना हर एक विद्यार्थी का अधिकार है. यदि बात सहशिक्षा पर आती है तो इसमें कई बार वाद विवाद हुआ है विगत वर्षों में सहशिक्षा एक चर्चा का विषय रही है
सहशिक्षा का शाब्दिक अर्थ बालक और बालिकाओं के एक ही पाठशाला में अध्ययन करने से है लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि सहशिक्षा शिक्षा प्राप्त करने का एक गलत तरीका है. लेकिन दुनिया जानती है कि सहशिक्षा किस प्रकार हमारे लिए उपयोगी साबित हुई है बिना सहशिक्षा का आचरण हमें एक सही इंसान नहीं बना सकता
सहशिक्षा पर निबंध – Essay on Co-education in Hindi
प्रस्तावना
सहशिक्षा से आशय लड़के-लड़कियोंं का एक ही शिक्षण संस्थान में एक साथ पढ़ना है. हमारे देश के शिक्षाविद् लड़के-लड़कियों को अलग-अलग पढ़ाने के पक्षधर रहे हैं इसके विपरीत पाश्चात्य शिक्षाविद् लड़के-लड़कियों को एक साथ एक ही विद्यालय में पढ़ाने के पक्षधर हैं
हमारे देश में सहशिक्षा का विचार अपेक्षाकृत नया है. देश के महानगरों में तो गत अनेक वर्षों से महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में सहशिक्षा का प्रचलन है
परंतु छोटे कस्बों और नगरों में अभी भी अलग-अलग शिक्षण संस्थाएँ हैं वास्तव में दोनों ही शिक्षा व्यवस्थाओं की अपनी-अपनी कमियाँ हैं इसलिए सहशिक्षा पर हमेशा मतभेद बना रहता है
सहशिक्षा उचित है
सहशिक्षा को उचित मानने वालों का विचार है कि लड़का-लड़की दोनों समाज के अनिवार्य अंग हैं. दोनों एक-दूसरे के पूरक भी हैं दोनों के व्यक्तित्व का विकास एक-दूसरे को गहराई से समझने से ही संभव है
दोनों जब साथ-साथ पढ़ते हैं तो उनमें आपसी समझ बढ़ती है उनका स्वाभाविक विकास होता है. अलग-अलग रहने के कारण दोनों में जो मिथ्या आकर्षण होता है, वह सहज ही दूर हो जाता है दोनों ही एक-दूसरे से परिचित हो जाते हैं
दोनों के मन में विपरीत लिंग के प्रति किसी ग्रंथि का जन्म नहीं होता दोनों इस दृष्टि से परिपक्व विचारों के हो जाते हैं. सहशिक्षा में दोनों को समानता का बोध होता है. दोनों में स्वस्थ प्रतियोगिता विकसित होती है सहशिक्षा से दोनों का व्यवहार शिष्ट हो जाता है
सहशिक्षा अनुचित है
हमारे समाज के कई लोगों का विचार है कि सहशिक्षा पाश्चात्य जगत् की देन नहीं वरन् अभिशाप है क्योंकि जब विद्यार्थीगण अपने भिन्न लिंगी सहपाठियों के संपर्क में आते हैं तो उनका प्राकृतिक आकर्षण स्वत: स्फूर्त हो जाता है
साथ ही किशोरावस्था जीवन के सुंदर-असुंदर, उपयोगी-अनुपयोगी अथवा हितकर-अहितकर चित्रों से सर्वथा अनभिज्ञ होती है. मनुष्य एक जिज्ञासु प्राणी है अज्ञात के ज्ञान की जिज्ञासा मानव-प्राणी का एक विशिष्ट गुण है. इसी गुण से प्रेरित होकर बालक-बालिकाएँ प्रेम-क्रीडा के राग अलापने लगते हैं
प्रारंभिक कक्षा का सामान्य और बाल परिचय आयु के विकसित और शारीरिक विकास के साथ ही भेंट, स्पर्श और आलिंगन के विभागों से होता हुआ व्यभिचार तक जा पहुँचता है, जिसकी परिणति या तो प्रेम-विवाह में होती है या अन्य अमानुषिक कृत्यों में समाप्त हो जाती है
इस विचारधारा के लोग ‘मनुस्मृति’ को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हैं. ‘मनुस्मृति’ में स्पष्ट लिखा गया है कि पिता-पुत्री, भाई-बहन तथा माँ और पुत्र को भी एकांत में रहना उचित नहीं है क्योंकि काम-वृत्ति मनुष्य की एक स्वाभाविक वृत्ति है और विपरीतलिंगी को देखकर उत्तेजना प्रबल हो सकती है
यह उत्तेजना मनुष्य की मनुष्यता पर नियंत्रण कर लेती है. स्वामी दयानंद सरस्वती ने सहशिक्षा की गंभीर आलोचना करते हुए बालक-बालिकाओं के संपर्क को घृत की उपमा प्रदान की है
सहशिक्षा के लाभ
अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जिन विद्यालयों में सहशिक्षा की व्यवस्था है क्या वहाँ चरित्रहीनता को बढ़ावा मिला है? दूसरी ओर जहाँ पृथक् शिक्षा व्यवस्था है क्या वहां सहशिक्षा की तुलना में अधिक चरित्र-बल है?
पता चलता है कि जहाँ सहशिक्षा होती है वहां का छात्र अधिक सुसभ्य, शालीन और सहज होता है. सहशिक्षा में पढ़ रहे व्यक्ति का व्यक्तित्व भीतर-बाहर से एक-सा हो जाता है
दूसरी ओर पृथक् व्यवस्था में पढ़े हुए छात्र ऊपरी तौर पर बड़े सौधे, चरित्रवान् और अनुशासनप्रिय-से लगते है, किंतु उनके भीतर काम-विषयक कुंठाएँ अड्डा जमा लेती हैं
सहशिक्षा का सकारात्मक प्रभाव हमारे समाज पर पड़ता है इस बात में कोई शक नहीं है. सह शिक्षा हमारी युवा पीढ़ियों के लिए काफी उपयोगी है क्योंकि सहशिक्षा से ही जीवन की मूल इकाई को समझने और उनसे निपटने में सहायता होगी और सह शिक्षा के कई लाभ है
उपसंहार
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि यद्यपि इस पद्धति में चारित्रिक पतन की संभावना की बात कही जाती है किंतु यह आवश्यक तो नहीं कि अलग-अलग शिक्षालयों में पढ़ने से उत्तमें चारित्रिक उत्कर्ष अवश्य ही उपलब्ध होगा
चारित्रिक पतन का मूलकारण तो आर्थिक संकट होता है और आर्थिक संकट सहशिक्षा से नहीं आता वरन् सामाजिक वर्ग-भेद से उत्पन्न होता है
सहशिक्षा का विरोध करना वास्तव में स्त्री शिक्षा का विरोध करना है. सहशिक्षा का प्रयोग प्रारंभिक शिक्षा स्तर से लेकर उच्च कक्षाओं तक होना चाहिए, क्योंकि इससे केवल व्यक्ति ही नहीं, राष्ट्र भी लाभान्वित होगा
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संक्षेप में
मुझे उम्मीद है आपको सहशिक्षा पर निबंध – Essay on Co-education in Hindi और सहशिक्षा के लाभ अच्छे से समझ में आ गए होंगे उम्मीद है आप भी सहशिक्षा को बढ़ावा देंगे
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